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उन दिनों

मेरी पसंदीदा पेंटिग कलाकार 'वर्तन आर्ट ' उन दिनों  उन दिनों चाँद भी हथेलियों पर उतर आता था उन दिनों हथेलियाँ ख़ुशबुओं से महकती थीं उन दिनों हथेलियाँ बस दुआओं के लिए उठती थीं उन दिनों हथेलियों की नावों में  रंग बिरंगी तितलियाँ सवार रहती थीं उन दिनों हथेलियों के उठान प्रेम के आवेग थे आसमान पर उमड़े बादलों की तरह उन दिनों हथेलियों की रेखाएँ भी ईश्वरीय मिलन के रास्ते थे ये जादू था चार हथेलियों का जिसने हथेलियों पर प्रेम की फसल उगा ली थी ये जादू था चार हथेलियों का जिसने समूची धरती को ख़ुद पर पनाह दे दी थी जैसे जादू चल नहीं पाता बिना जादुई ताकत के वैसे थम गया था चार हथेलियों का जादू दो के होते ही अब हथेलियाँ बदन का हिस्सा भर थीं बस ! 

दोष किसका मेरा या तुम्हारा ?

दोष किसका मेरा या तुम्हारा ? ब हुत थके से ,उनीदे से लग रहे हो तुम  कुछ शिकायती से भी , माँओं की लोरियां भी आपने लाडलों को नींद का बिस्तर दे चुकी हैं चौपालों के हुक्कों की गुडगुडाहट भी चुप है चूल्हों की राख भी ठंडी हो चुकी है अब  गाँव से चलें शहरों की ओर  तो  रौशनी से जगमगाते टॉवर रात गए इठला रहे हैं अपने उजालों पर     सड़कों पर भी गिनी चुनी सी रफ्तारों का शोर है बस जारी है तो रोशनियों की चहलक़दमी   श sssssssssssssssssssssssss 'एक नींद की जागीर  सब लूटने चले हैं सोकर ' और तुम हो कि मेरे ख़्वाबों में चहलकदमी कर रहे हो   फिर  क्यों न होगी थकन ,उनींदे दिन ,उबासी साँसे अब बताओ  दोष किसका मेरा या तुम्हारा ?