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गज़ल

ग़ज़ल  खुद को कैसे सोचें अब हर लम्हे तुमसे  हों जब हाथ मिलाएं उनसे क्यूँ दिल में शक शुबहे हों जब उस दिन की उम्मीद में हैं सपनीली सुबहे हों जब ख़ुद में यकीं ज़रूरी  है पथरीली राहें हों जब कैसे प्यार के गीत लिखें जीवन में आहें हों जब

आधी दुनिया की कुछ ज़िन्दगियाँ " जिन्हें सब कुछ स्वीकार है "

आधी दुनिया की कुछ ज़िन्दगियाँ " जिन्हें सब कुछ स्वीकार है " 25 नवम्बर को 'International day for the ellemination of violence against women 'से शरू होकर १० दिसंबर 'अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस ' की समाप्ति तक एक बार फिर हम '16 days of activism against gender violence' मना रहे हैं |सपष्ट है आधी दुनिया की कुछ  ज़िन्दगियाँ आज  भी ऐसे किसी भी दिवस के अर्थों से अंजान हैं |उनके लिए १६ दिन क्या १६ सदियाँ भी उनकी अस्तित्व को शून्य से शिखर नहीं दे पायीं |ऐसी ही कुछ ज़िन्दगियों  के नाम ...... कुछ काँच के टुकड़े  हथेली में भीचें हुए हूँ मैं , बचपन से लेकर झुरियों तक  के सफ़र तक  शायद, अब   मेरी लकीरें  कट कट कर जुड़ जाने की मजबूरियों को भी  हौसलों का नाम देकर  खुशफ़हम  सी रहती  हैं |