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फूल सबके लिए महकते हैं

फूल सबके लिए महकते हैं लोग लेकिन कहाँ समझते है ज़िन्दगी जी रहे हैं हम लेकिन ज़िन्दगी के लिए तरसते हैं वक़्त का एक नाम और भी है लोग मरहम भी इसको कहते हैं रोज़ मिलते नहीं हैं हम ख़ुद से रोज़ ख़ुद से मगर बिछड़ते हैं फूल जैसे जो खिल नहीं पाते फूल जैसे वही बिखरते हैं वक़्त में ख़ासियत है क्या ऐसी वक़्त के साथ सब बदलते हैं