पूर्णचन्द्र सा प्यार है मेरा, पर जुगनू सा प्यार तुम्हारा इसीलिए अब तक अनगाया, है ये जीवन गीत हमारा। प्रेम हमारा था इक पौधा हमने मिलकर वृक्ष बनाया लेकिन पतझड़ मेरे हिस्से तुमने केवल चाही छाया तुम मीठा जल पीने वाले, कैसे पीते पानी खारा। इसीलिए अब तक अनगाया, है ये जीवनगीत हमारा। तन होता जब भी एकाकी मन तब पास चला आता है स्मृतियों की गुँथी चोटियाँ खोल खोल कर उलझाता है तब पढ़ना पड़ता भूला सा, पाठ दुबारा और तिबारा। इसीलिए अब तक अनगाया, है ये जीवनगीत हमारा। तुम यदि साधन साध्य समझते हम दोनों अमृत घट भरते इक दूजे को सृजते सृजते अंतर्मन पर सतिये धरते निष्ठा प्रश्न पूछती तुमने, मुझको शनै: शनै: क्यों हारा। इसीलिए अब तक अनगाया, है ये जीवनगीत हमारा। दीवारों की दरकन पर मैं कब तक इक तस्वीर सजाऊँ कब तक कड़वे पान के पत्ते पर मिश्री गुलकंद लगाऊँ डूब रही साँसों को देना है, मुझको अब शीघ्र किनारा। इसीलिए अब तक अनगाया है, ये जीवनगीत हमारा