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दृष्टि नहीं है भेद पाने की

सुविधायें भी दुविधायें हैं कभी कभी जब लगता है मेरे पास दृष्टि नहीं है भेद पाने की भौतिक चश्मे को उतार कर देख पाने की   सुख की उन असीमित पराकाष्ठाओं को जिस सुख का पाठ सदियों से महापुरुषों के मुख से होता आया है कभी कभी इनका आवरण उतार कर मिलना चाहती हूँ उस प्रश्न   के उत्तर से जहाँ मैं प्रतिरोध कर पाऊं अपने शारीरिक कष्टों का और प्रेरक बने वो मेहनतकश औरत जिसके लिए सूखी रोटी भी उसके हीमोग्लोबिन का स्तर ऊँचा रखती है  मशीनी सुकून की आदतों को दरकिनार कर छत पर ओस की धागे सी बारीक झिमझिमाहट के नीचे सोऊँ जब तक जागूँ करती रहूँ झंकृत अपनी बातों से चाँद सितार को     चेहरे की रंगत के दब जाने से बेपरवाह धूप से भी कर लूँ दोस्ती जिससे अब तक मेरे घर के अचार,बड़ियों,कपड़ों का ही बेतकल्लुफ़ सा रिश्ता है बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत सारी छोटी-बड़ी इच्छाओं सी पतंगों की दिशाओं का और उड़ानों का प्रारंभ भी मैं और अंत भी मैं ............

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पश्चिमी उत्तरप्रदेश का एक छोटा सा ज़िला है बदायूँ |इल्तुतमिश,अमीर खुसरो ,हज़रत निजामुद्दीन, इस्मत चुगताई ,फानी बदायूँनी ,शकील बदायूँनी ,दिजेंद्र नाथ'निर्गुण ',मुंशी कल्याण राय ,पद्म विभूषण उस्ताद गुलाम मुस्तफ़ा खां ,पद्म श्री उस्ताद राशिद खां ,ओज कवि डॉ.ब्रजेन्द्र अवस्थी ,राष्ट्रीय गीतकार डॉ.उर्मिलेश जैसे मूर्धन्य साहित्यकारों एवं संगीतकारों की जन्मभूमि बदायूँ में मैं भी जन्मी हूँ ,यहाँ  की मिट्टी में ही संगीतिकता,साहित्यकता,सांस्कृति कता की सुगंध मिली हुई है | अँग्रेजशासित समय में निर्मित 'बदायूँ क्लब 'जो कि पहले यहाँ के कलेक्टर 'एलन' के नाम पर 'एलन क्लब' के नाम से जाना जाता था ,बदायूं के इतिहास में बड़ा एतिहासिक महत्व रखता है उसकी महिला विंग की विगत दो वर्षों से मैं सक्रेटरी रही हूँ |बहुत से सांस्कृतिक आयोजन हम समय  -समय पर करते रहे हैं  समय -समय पर क्लब सदस्यों की श्रीमतियाँ एकत्रित  होती हैं 'गेट टुगेदर' के लिए |वहाँ बड़ी खुशमिज़ाजी से एक बारह साल का बच्चा जो कि क्लब के एक employee का बेटा है.....चाय,पानी इत्यादि की service कर देता है
पश्चिमी उत्तरप्रदेश का एक छोटा सा जिला है बदायूँ | शकील बदायूँनी , फ़ानी बदायूँनी,दिजेंद्र नाथ 'निर्गुण ',मुंशी कल्याण राय पद्म विभूषण उस्ताद गुलाम मुस्तफा खान