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मई, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

मैं बस मैं हो जाऊँ

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  कोई प्रतीक न हो कोई उपमा न हो न कोई नाम हो न कोई रूप हो उस घटने का जिसे मैं अपने भीतर घटते हुए देखूँ वो मेरे होंठों की तृप्त मुस्कुराहट और बन्द आँखों से टपकते आँसुओं में नज़र आये अपनी क्रियाओं की मैं दृष्टा बनूँ अपनी संज्ञा की मैं साक्षी उन सारे कारक को द्वार मानूँ जो मुझे मुझमें प्रवेश करवाएं मैं बस मैं हो जाऊँ जैसे हवा हवा है फूल फूल है सूर्य सूर्य है रात रात है वैसे मैं मैं हो जाऊँ सोनरूपा २६ मई २०२१

हिन्दी ग़ज़ल और डॉ. उर्मिलेश (परिचय)

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  ख़ुश हूँ कि आख़िर डेढ़ वर्ष की समवेत मेहनत का परिणाम आ ही गया इस संग्रह के रूप में। और आज के दिन इसकी सूचना मैं इसीलिए भी देना चाहती थी जिस दिन डॉ. उर्मिलेश ने अपने जाने का दिन चुना उसी दिन हमने उन्हें अपने भीतर ज़िंदा रखने को चुना। समकालीन ग़ज़ल के सर्वाधिक सक्रिय-सार्थक ग़ज़लकारों की अग्र पँक्ति में डॉ उर्मिलेश के नाम का उल्लेख किया जाता है।हिन्दी ग़ज़ल की यात्रा,परम्परा और विकास का अगर अध्ययन करना है तो डॉ उर्मिलेश को पढ़े बिना ये अधूरा रहेगा।इसमें कोई दो राय नहीं हैं।न केवल उनकी ग़ज़लें वरन उनका चिन्तनशील गद्य साहित्य भी हिन्दी ग़ज़ल के प्रति उनकी दृष्टि को समझने के लिए अत्यंत आवश्यक है।इसी आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए डॉ उर्मिलेश ग़ज़ल के लिए अनथक श्रम और समर्पण को एक जिल्द में बाँधने का कार्य 'हिन्दी ग़ज़ल और डॉ. उर्मिलेश' के रूप में शीघ्र ही आपके सामने होगा। वरिष्ठ कवि एवं हिन्दी ग़ज़ल के अध्येता आदरणीय हरेराम समीप जी की प्रेरणा और निरन्तर परामर्श से मैं इस संग्रह के सम्पादन का बीड़ा उठा पाई।मुझ पर उनके विश्वास और अपने अभिन्न मित्र उर्मिलेश के द्वारा ग़ज़ल में योगदान के प्रति उनकी निष्ठा

परशुराम जयंती विशेष

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  आज अक्षय तृतीया चिरंजीवी भगवान् परशुरामजी के जन्मोत्सव का दिन है। सनातन धर्म में तीन 'राम' विष्णु के अवतार हैं। परशुरामजी, रामजी और बलरामजी। इनकी एकसाथ 'राम-त्रय' कहकर स्तुति की जाती है। लेकिन दुर्भाग्यवश आज परशुराम और राम को हीन राजननीतिक दृष्टिदोष के कारण जातीय परिमाप से नापने की कोशिश होती दिख रही है। नदी, पर्वत, पशु, पक्षी, तीर्थ, व्रत, त्याग, युद्ध और प्राणिमात्र के साथ चारों वर्णों के असंदिग्ध महत्व का प्रतिपादन कभी रोका नहीं जा सकता। साथ ही किसी एक को सम्मान देना अन्यों का अपमान नहीं हो सकता। अपितु एक के यशवर्णन में प्रसंगतः और परोक्षतः सभी का महत्त्व संसूचित होता है। यही हमारी संस्कृति की अद्भुत बिनावट है। अंत में यह कह दें कि भगवान् परशुरामजी क्षत्रियों के विरोधी नहीं, अपितु विलासी और प्रजापालन में दोषी क्षत्रपों के विरुद्ध महाक्रांति के प्रतीक थे। जिसकी जरूरत आज भी जस की तस है। ऐसा न होता तो श्रीराम को पहचानकर वे शस्त्र रख क्यों देते? वस्तुतः दशरथनन्दन राम को भगवान् होने का प्रमाण क्रमशः तीन प्रतापी ब्राह्मणों ने ही दिया। प्रारंभ में महर्षि वशिष्ठ ने प्रेम स

ईद मुबारक

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  भले ही इस बार बाज़ारों में,दुकानों में,मेलों में,गलियों में पहले सी रौनक नहीं होगी।कोई हामिद दादी को मेले से चिमटा न ला पाएगा।इस बार सिवइयों की कटोरियाँ भी दोस्तों के हाथ में नहीं होंगी।गले बिन मिले रह जाएंगे।महबूबा को नए लिबास में न देख पाना आशिक़ को कितना अखरेगा।लड़कियाँ आँक नहीं पायेंगी कि उसका झुमका मेरे झुमके से सुंदर कैसे? चूड़ियाँ खनकने को बेताब ही रह जायेंगी।बच्चे ईदी ख़र्चने को। लेकिन अपनी पूरी सज धज के साथ, रौशनी से लबरेज़, आसमान में ईद की मुनादी करने वाला चाँद ख़ुशियों और उम्मीदों का अब्र लेकर आया है ईद के ज़रिए। उसे मायूस नहीं करना है हमें इसीलिए आइए मेरे साथ कहिए- इक अरसे से अच्छे पल दीद नहीं अब तक देखी ऐसी कोई ईद नहीं लेकिन मेरे चाँद तुझे ये बतला दें, बेबस हैं हम लेकिन नाउम्मीद नहीं #ईद_मुबारक

माँ

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  शाम सी नम,रातों सी भीनी,भोर सी है उजियारी माँ, मुझमें बस थोड़ी सी मैं हूँ मुझमें बाक़ी सारी माँ. जब मुश्किल हालात के अंगारों से हमको आँच मिली, बारिश सी शीतलता हमको देती रही हमारी माँ. कैसे भी ख़र्चे हों उनको वो पूरा कर देती हैं, रखती है मासूम से मन में बनिए सी हुश्यारी माँ. कितनी बार उसे देखा था मैंने ऐसे रूप में भी, होंठों पर मुस्कान लिए है आँखों में लाचारी माँ. माँ की सूरत और सीरत का कैसे मैं गुणगान करूँ, फूल सा चेहरा,कोकिल वाणी,पूजा की अग्ज्ञारी माँ. #Mothersday2021