आज अक्षय तृतीया चिरंजीवी भगवान् परशुरामजी के जन्मोत्सव का दिन है। सनातन धर्म में तीन 'राम' विष्णु के अवतार हैं। परशुरामजी, रामजी और बलरामजी। इनकी एकसाथ 'राम-त्रय' कहकर स्तुति की जाती है। लेकिन दुर्भाग्यवश आज परशुराम और राम को हीन राजननीतिक दृष्टिदोष के कारण जातीय परिमाप से नापने की कोशिश होती दिख रही है। नदी, पर्वत, पशु, पक्षी, तीर्थ, व्रत, त्याग, युद्ध और प्राणिमात्र के साथ चारों वर्णों के असंदिग्ध महत्व का प्रतिपादन कभी रोका नहीं जा सकता। साथ ही किसी एक को सम्मान देना अन्यों का अपमान नहीं हो सकता। अपितु एक के यशवर्णन में प्रसंगतः और परोक्षतः सभी का महत्त्व संसूचित होता है। यही हमारी संस्कृति की अद्भुत बिनावट है। अंत में यह कह दें कि भगवान् परशुरामजी क्षत्रियों के विरोधी नहीं, अपितु विलासी और प्रजापालन में दोषी क्षत्रपों के विरुद्ध महाक्रांति के प्रतीक थे। जिसकी जरूरत आज भी जस की तस है। ऐसा न होता तो श्रीराम को पहचानकर वे शस्त्र रख क्यों देते? वस्तुतः दशरथनन्दन राम को भगवान् होने का प्रमाण क्रमशः तीन प्रतापी ब्राह्मणों ने ही दिया। प्रारंभ में महर्षि वशिष्ठ ने प्रेम स...