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एक इमोशनल फ़ूल के कुछ मुश्किल पल और उसकी जकड़न

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अगर मैंने दिवम पूछा-दिवम...आज आपके स्कूल में पाकिस्तान में पेशावर के आर्मी स्कूल में मारे जाने वाले बच्चों के लिए साइलेंस रखा गया था |तब मैंने ये नहीं कहा कि आपको मालूम है कि हमारे साइलेंस रखने पर या उन बच्चों के लिए संवेदना जताने पर कुछ लोगों का कहना है कि जब मुंबई में २६/११ का हमला हुआ तो क्या पाकिस्तानियों ने हमारे लिए संवेदना जताई थी जो हिन्दुस्तानी आँसू बहा रहे हैं और पाकिस्तानी भी इतने बदसूरत मंज़र के बात भी नहीं चेते हैं | मुझे मालूम है एक बच्चा संवेदनायें दिल से महसूस करता है भले ही ‘संवेदना’ शब्द उस बच्चे के लिए समझना सबसे कठिन हो | अगर बच्चों ने पूछा...मम्मा संसद किसे कहते हैं ? मैंने संसद के बारे में समझाते हुए ये बिलकुल नहीं बताया कि हमारे रीप्रिसेंटेटिव यहाँ हाथापाई भी करते हैं,गाली देते हैं कुर्सियां फेंकते हैं | अगर कभी मैं बच्चों से धर्म के बारे में बात करूँगी तो यही कहूँगी कि तुम इंसानियत को अपना धर्म मानना लेकिन बचूँगी ये बताने से ‘कि जिस देश में तुम रहते हो वहाँ धर्म में अंधभक्ति सिखाई जाती है,सबसे ज़्यादा फ़साद धर्म की वजह से होते हैं,धर्म सबसे ज़्यादा लची

फीलिंग नॉस्टॅल्जिक

'फीलिंग  नॉस्टॅल्जिक   ’ फेसबुक पर कुछ दोस्त अपने स्टेटस में अक्सर इसे जोड़ कर अपनी यादें पोस्ट करते  है | मुझे दोस्तों की ये यादें,बातें सबसे बहुत सहज और अच्छी लगती हैं | ' नॉस्टेलजिया  '  यानि  ‘बीते वक़्त  की याद’ | स्मरणहीन के अलावा कोई ऐसा नहीं है जो यादें दोहराता न हो,हम अक्सर भूले बिसरे पल दोहराते हैं |फ़िर आज ऐसी कौन सी नई बात मैं लिखने बैठी हूँ यादों के बारे में ? ये मैंने ख़ुद से पूछा | शायद इसीलिए कि मुझे महसूस होता है कि जो हमारा आज है इसे याद करने वाले ज़रूर  होंगे लेकिन ये यादें इतनी पक्की या पुर सुकून न हों जितनी अब हैं या पहले थीं |  मल्टीटास्किंग लोगों की बढ़ती गिनती ,सिर्फ़ ‘मैं और मेरा’ सर्वनाम जानने वाले लोग,ए फॉर एप्पल से पहले एस फॉर सक्सेस के सिखलाने वाले माँ पिता ,ग से ग्लोबलाइजेशन के आगे अपने ग से गाँव अपनी जड़ों को भूल जाने वाले लोग सिर्फ़ हासिल करने की कोशिश में  हैं पा लेने की नहीं | वो ये सब कर पाते हैं तो सिर्फ़ अपने हसरत और मंज़िल पर नज़र रखने के बाद ,कई यादें कई तहों में दबा लेने के बाद | क्यों कि आगे की रौशनी इन रोशनियों को मद्धम कर देने के बाद य

मेरी आई बॉल्स पलकों में क़ैद हैं

तीन दिन बाद घर वापस आई हूँ ,आदतन इन दिनों आये अखबार खंगाले बिना मुझे चैन नहीं आता, ख़ास-ख़ास ख़बरें पढ़ रही हूँ और अब नींद भी आने लगी है | स्पोंडिलाईटिस का दर्द पिछले कुछ दिनों से परेशान कर रहा है, और यूँ ही पढ़ते-पढ़ते अख़बार के दैनिक कॉलम पर मेरी नज़र गयी है पूरे कॉलम में बस यही बात को मैंने ढंग से  और दो बार पढ़ा है जहाँ डॉ.शिंडलर कहते हैं कि ‘डॉक्टर के पास जाने वालों में से ९९ प्रतिशत को कुछ नहीं हुआ होता है वे डॉक्टर के पास इसीलिए जाते हैं उन्हें अपनी भावनाओं को काबू करने की कला नहीं मालूम ,फिर उन्होंने ये भी बताया की बीमार घोषित किये गए लोगों में भी ज़्यादातर इसीलिए बीमार हैं क्योंकि उनके पास सकारात्मक विचार नहीं’ये पैरा को पढ़कर इसमें से मैंने अपने काम लायक सत निकाल लिया ,कि सोनरूपा तुम भी अपनी छोटी-छोटी तकलीफ़ों को नज़रंदाज़ करना सीखो |मैंने लाइट्स ऑफ कर दी हैं |लेकिन लेटते ही कई बातें नींद में ख़लल डाल रही हैं मेरे आई बॉल्स बंद पलकों में क़ैद हैं और आँखें खुलने का इंतज़ार कर रही हैं मुझे एक ही रास्ता सूझ रहा है कि बस लिख डालूँ,२ बज रहे हैं और मैं टाइप कर रही हूँ | १५ तारीख़ को तिहाड़ ज

ज़िन्दगी गोज़ ऑन

रघुपति सहाय 'फ़िराक'कहते हैं कि ‘वजूद में हमेशा बासी होने का ख़तरा रहता है’ और शायरी हमें बासी नहीं होने देती,वो हमें हमारी ज़िन्दगी वापस कर देती है’ | सोचें तो अगर ज़िन्दगी अनिश्चित न होती तो हम कितने निश्चिंत होते और निश्चिंतता भी ज़िन्दगी को बासी कर देती है  | अब यहाँ शायरी और ज़िन्दगी दो अलग अलग बातें हैं,लेकिन समानांतर हैं क्यों कि न जाने कितनी ज़िंदगियाँ शायरी में जी ली जाती हैं |ज़िन्दगी का बयान ही तो होती हैं कवितायेँ ,शायरी| पिछले कुछ दिनों से कुछ शाम छत पर टहलने का सबब हेल्थ के लिए अच्छा होने से इतर बादलों की आकृतियों को निहारना,अँधेरा होते ही कभी-कभी घर के सामने बगीचे में सिर्फ़ जुगुनुओं का झुरमुट देखने को मन होना ,रस्ते चलते बच्चे के सिर पर टीप मारकर उसे चौंक कर मुँह बनाते हुए देखना,दैनिक पूजा अर्चना से अलग बस कुछ देर कृष्ण के नाक नक्श को देखते रहना,कभी यूँ ही मन अपनी कोई पुरानी बनारसी साड़ी ठेठ देसी अंदाज़ में पहनने का बहाना ,पारदर्शी शीशे के वास में पनपे मनी प्लांट की बेल की जड़ इशारे करते हुए दिखाई देना और कहना मजबूत बनी रहना तभी ज़िन्दगी मेरे हरे पत्तों जैसी ख़ूबस

हरा भारत भरा भारत

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हम छोटे -छोटे बच्चे इन छोटे-छोटे पौधों को बड़ा करेंगे ! कन्या पूजन ! #gogreen #greenIndiacleanIndia

बदलाव के संवाहक

अगर कोई व्यक्ति अपनी क्षमताओं को पहचान कर उसका उपयोग समाज की अच्छाई के लिए करे तो उससे अच्छा और स्मार्ट सिटीजन और कौन होगा ,निहाल सिंह हमारे शहर बदायूँ से ५० किलोमीटर दूर गाँव मुसिया नगला में रहते हैं ,इन्होनें अपने साथ ९९ किसानों को जोड़ कर और उन्हें जैविक खेती सिखा कर पर्यावरण और स्वास्थ्य की रक्षा में अपनी भागीदारी  सुनिश्चित की है ,मुझे जानकर बहुत अच्छा लगा कि एक सुविधाविहीन शहर में  कभी आर्थिक तंगी झेलते हुए जो पढाई के लिए कर्जदार हो गए आज उन्होंने अपना सफ़ल करीयर भी बनाया और जैविक खेती को अपनाया ,कैलीफ़ोर्निया की एक कम्पनी ने उन्हें बतौर सलाहकार नियुक्त किया है ये बहुत गर्व की बात है | आजकल स्मार्ट सिटी बनाये जाने के लिए जाने की मुहिम ज़ोरों पर है ,किसी भी शहर को सिर्फ़ आधुनिकता से जोड़ना ही स्मार्ट सिटी का ख़ाका नहीं खींचता , अब तक की जानकारी के अनुसार शायद मेरे ज़हन में स्मार्ट सिटी की यही परिभाषा है ,आने वाले समय में जो भी विकास हो उसे एन्वायर्नमेंट फ्रेंडली होना बहुत ज़रूरी है स्मार्ट सिटी के अंतर्गत इंडस्ट्रीज़ को बढ़ावा ,वातानुकूलित शहर होना   इत्यादि पर्यावरण के लि

नायाब तरीक़ा

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हमारे देश में ज़िम्मेदार ओहदों पर विराजमान महानुभाव अक्सर बेतुके बयानात देते रहते हैं और इन मामलों को  तूल देकर ऐसे लोगों को पब्लिकली और ज़्यादा डीफेम करना दरअसल इनकी लोकप्रियता में इजाफ़ा करना होता है (इनके अनुसार बदनाम  हुए तो क्या ,नाम तो हुआ ) हमारे यहाँ सानिया मिर्ज़ा के तेलांगना की ब्रांड एम्बेसेडर बनने को लेकर आये बयान सुनकर लोग शॉर्ट  टेम्पर्ड दिखते है ,'दिल्ली मुंबई में यू पी, बिहार के लोगों के आने से वहां के हालात बदतर हो गये हैं' ये सुनकर लोगों का ब्लडप्रेशर हाई हो जाता है आदि आदि (ये हालिया बयान हैं वरना लिस्ट तो बहुत लम्बी है ) नुकसान किसका होता है ? ओव्यसली हमारा| ऐसा ही एक बयान टर्की के उप प्रधान मंत्री ने दिया, उनके अनुसार ‘ स्त्रियों के सार्वजनिक जगहों पर हँसने से अनैतिकता को बढ़ावा मिलता है’ !इस बयान को सुनकर वहाँ सोशल मीडिया पर तीन लाख से ज़्यादा फ़ोटोज़ शेयर किये जा चुके हैं जिसमें लडकियाँ उस बयान पर अपनी हंसती हुई तस्वीरें पोस्ट कर रही हैं,ऐसे बयान देने वाले को शर्मिंदा करने का ये तरीक़ा बहुत नायाब है| नायाब इसीलिए कि ये लोग बेसिर पैर की बा

मॉरिशस में कुछ यादगार दिन

आधारशिला प्रकाशन द्वारा विश्व हिंदी मिशन के रूप में विश्व हिंदी सम्मलेन का आयोजन मॉरिशस में  २८ अक्टूबर से ३ नवम्बर तक हुआ मैं भी वहाँ आमंत्रित थी| एक सार्थक प्रयास के लिए यानि हिंदी को संयुक्तराष्ट्र (यू इन ओ) की भाषा बनाने और हिंदी की बढ़ती व्यापकता से नई पीढ़ी को जोड़ने और उन तक अपनी बात को अपने वक्तव्यों ,कविताओं द्वारा संप्रेषित के लिए हमारे ३२ सदस्ययीय दल ने वहाँ अपनी मौजूदगी दर्ज कराई | पहले दिन का कार्यक्रम मॉरिशस की राजधानी पोर्ट लुईस में महात्मा गाँधी इंस्टिट्यूट में आयोजित हुआ वहाँ के सभी साहित्यिक सांस्कृतिक गतिविधिओं का केन्द इस इंस्टिट्यूट में, दो बार विश्व हिंदी सम्मलेन का आयोजन हो चुका है |यहाँ के कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में मॉरिशस के उप प्रधानमंत्री, पूर्व मुख्यमंत्री (उत्तराखंड)श्री भगत सिंह कोशियारी एवं मॉरिशस के कला और संस्कृति मंत्री श्री मुकेश्वर चूनी उपस्तिथ रहे,मेरे द्वारा सरस्वती वंदना से कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ ,मॉरिशस के अनेकों लेखकों,कवियों ,साहित्यकारों की उपस्तिथि ने कार्यक्रम को गरिमा प्रदान की ,अनेक वक्तव्यों, पेंटिग प्रदर्शनी,पुस्तक प्

समीक्षा'लिखना ज़रूरी है'

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प्रसिद्ध  ब्लॉगर मनीष कुमार जी ने मेरे ग़ज़ल संग्रह'लिखना ज़रूरी है' की विस्तृत समीक्षा की है  अपने आप को व्यक्त करने की इच्छा हम सबमें से बहुतों की होती है। कभी जब ये कसक ज़रा ज्यादा जोर मारती है तो हम काग़ज़ के पन्नों को रंगते हैं और फिर भूल जाते हैं। पहले तो अपना लिखा देखकर ये लगता है भला इसे पढ़ेगा कौन? फिर ये भी लगता है कि अगर किसी ने पढ़ लिया और एक सिरे से ख़ारिज़ कर दिया तो फिर इस तरह नकारे जाने का दर्द ना जाने कब तक मन को टीसता रहेगा। कुछ दिनों पहले   कैफ़ी आज़मी से जुड़ा संस्मरण  बाँटते समय बताया था कि ये झिझक और बढ़ जाती है जब अपने ही घर में लिखने पढ़ने वाले इतना नाम कमा गए हों कि उनके सामने अपनी हर कृति बौनी लगे। इसी संकोच की वज़ह से बहुतेरे अपने को कम आँकते हुए उसे सबके सामने लाने की ज़हमत नहीं करते और कुछ क़ैफी जैसे होते हैं तो हर उस मौके, उस दबाव को ध्यान में रखते हुए अपने हुनर का इम्तिहान देने से ज़रा भी नहीं कतराते। सोनरूपा विशाल के पहले ग़ज़लों और नज़्मों का संग्रह ' लिखना ज़रूरी है'  को भी इसी परिपेक्ष्य में देखना जरूरी है। लेखिका की पहचान एक ख

किरणें

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न्यूज़ चैनल्स की क्लिपिंग्स से मालूम चलता है कि गाज़ियाबाद के एक फाइव स्टार होटल की ओपनिंग सेरेमनी में होटल मालिक किसी नामी गिरामी राजनेता ,फिल्म स्टार या किसी और बड़ी हस्ती को न बुलाकर किसी अनाथालय के ख़ूब सारे बच्चों को चीफ़ गेस्ट बनाते हैं जहाँ बच्चे महँगी घास से ग्रीन हुए लॉन में मन भर कर उछल कूद करते हैं और पेट भर कर नाज़ुक क्राकरी में खाते हैं तब जब चेन्नई में गंभीर रूप से बीमार एक २१ साल की युवती के जल्दी से जल्दी हार्ट ट्रांसप्लांट के लिए पुलिस और चेन्नई के नागरिक ट्रेफिक को एक जगह जाम कर देते है जिससे उसका ट्रीट मेंट समय पर संभव हो पाता है तब जब एक आई टी कम्पनी में काम करने वाला युवक अपनी पहली तनख्वाह से रोड पर लावारिस घूमने वाले बच्चों को मन भर कर मेक्डोनाल्ड में पिज़्ज़ा बर्गर खिलाता है   तब जब एक रईस बिज़नेसमैन सुबह-सुबह गुरूद्वारे जाकर वहाँ आने वाले लोगों के जूते साफ़ करता है और मन में  संतोष का एहसास लेकर अपनी आलीशान कार में बैठ कर ऑफिस का रुख़ करता है और ये वीडियो सोशल साइट्स पर लाखों लोग देखते हैं और लाखों बार ‘हैट्स ऑफ’ लिख कर उसे शेयर करते हैं तब जब

यादों का फलैश बैक

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शायद पाँचवी क्लास की स्टूडेंट थी जब मुझसे क्लास में कहा गया कि ‘आपको एक ऐसा कार्ड बना कर लाना है जिससे हमें कोई अच्छी शिक्षा मिलती हो’!मुझ पर ज़्यादा आईडियाज़ तो नहीं थे , लेकिन ‘मेरा चार्ट सबसे सुंदर हो’ वाली सोच तो थी ! कुछ नहीं समझ में आया तो सोचा मम्मी से कहूँ,जब कि मुझे उन का उत्तर पता था ‘बेटा ख़ुद किया करो अपना काम’ | इतने में पापा बोले ‘लाओ मैं बनाता हूँ’ मेरे लिए आश्चर्य था क्यों कि वक़्त की क मी की वजह से कभी-कभार ही ऐसा होता था कि पापा हमारा पढाई से रिलेटिड को बात किया करते थे , खैर मैं ख़ुश हो गयी पापा ने एक आर्ट पेपर माँगा उसको दो हिस्सों में मोड़ कर उन्होंने बस तीन पिलर बना दिये पहला सबसे ऊँचा, दूसरा उससे कम, तीसरा उससे भी कम फिर तीनों को अलग अलग रंगों से रंग दिया और तीनों पर लिख दिया ‘पहले देश ,फिर माँ फिर और कुछ” मैं कुछ अनमनी सी हो गयी लेकिन उनको बिना जताए और बताए,उस कार्ड में मुझे कुछ भी बहुत सुंदर नहीं लगा मैंने सोचा 'ये कैसा कार्ड है जिसमे बस तीन लाइनें हैं',मैंने बुझे मन से अपने बैग में रख लिया !टीचर को दिखाया या नहीं ये तो याद नहीं! लेकिन जब धीरे धीरे बुद्धि न

इक दुआ !

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चलते फिरते

दो दिन पहले जी आई पी मॉल के सामने मैं आइस क्रीम से पार्ट टाइम ठंडी एन्जॉय कर रही थी कि वहां मौजूद ज़ी न्यूज़ की संवाददाता ने राय जानने के लिए मेरे आगे माइक कर दिया'३० सेकंड्स में आप हमें बता सकती हैं कि क्या आम महिलाओं के लिए राजनीति में आना मुश्किल है ?अगर वो आती भी हैं तो उनके फ़ैसले उनके नहीं होते,क्या उनकी वजाय उनके पति या उनके राजनीतिक अभिभावक उनके थ्रू रूल करते हैं ?  मैंने उनसे कहा- मैडम ये भी कोई पूछने की बात है , हम स्त्रियों के साथ तो मुश्किलें गर्भ से ही दोस्ती निभाती आ रही हैं बात कीजिये दूसरी वो ये कि 'हमारे यहाँ कौन सी गवर्नमेंट ऐसी है जिसका ख़ुद का रूल चलता हो!कोई भी फ़ैसला लिखा एक पेन से जाता है लेकिन स्याही देने वाले इस शर्त के साथ स्याही सप्लाई करते हैं कि"हमारा भी ध्यान रखना"! इस पर वो संवाददाता बोली कि आप बस वो ही बोलिए जो हम चाहते हैं ! मैंने कहा ..चलिए बोलते हैं कीजिये कैमरा ऑन !

गुफ़्तगू

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अपने दोस्तों को अलग-अलग नामों से पुकारे जाने की, चिढने-चिढ़ाने की परम्परा है बचपन की  ,मैं भी अजब-गज़ब नामों से अपने दोस्तों को आवाज़ देती थी ,मुझे उस वक़्त आज की तरह  फ़िक्र कहाँ थी कि उस दोस्त को बुरा लगा या भला ?सच्ची मुच्ची ,कच्ची पक्की जैसे शब्दों में हमारी दोस्ती फुटबॉल खेलती रहती थी ! कल रात ऐसे ही मैंने दोस्तों की यादों के  साथ बचपन की पिच पर फुटबॉल   मैच खेल रही थी कि चाँद ने आवाज़ दी और बोला ....... ." सुनो मेरा भी एक दोस्त है उसका नाम है गुलज़ार,वो ७६ साल का है और मैं हजारों साल पुराना, तुम्हारी तरह वो भी मुझे बहुत सारे नाम देता है !उससे नाराज़ होना तो दूर मैं तो उसके कंधे पर हाथ रखकर उसकी ख़ुशामद करते हुए अक्सर कहता हूँ यार गुलज़ार तुम ही जो मुझे बूढ़ा नहीं होने देते,तुम अब भी मुझसे करतब करवाते हो ,जब चाहे किसी भी सांचे में मुझे ढाल देते हो और मैं उफ़ भी नहीं करता"! मैंने भी चाँद से एटीट्यूड से  कहा "  ओ चाँद ,मुझे भी अपनी फ़ेरहिस्त में शामिल करो क्यों कि मैंने भी अपने कई लम्हे गुलज़ार के लफ़्ज़ों के बैंक  में फिक्स डिपाज़िट करवा दिए हैं" ! - गुलज़