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सितंबर, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं
कल फेसबुक पर कवि सम्मेलन के वर्तमान परिदृश्य को लेकर बड़ी ज़रूरी चर्चा पढ़ी!इस पोस्ट का मन्तव्य था जो मुझे लगा कि साहित्य का दूसरा खेमा मंचीय कविता को  नकारता है और उसका कारण कवि सम्मेलनों में बढ़ती स्तरहीनता है लेकिन सारे मंच और सारे कवि ऐसे नहीं तो सब को एक ही तौर से देखना ज्यादती है! मेरा भी यही मानना है कि हर मंच इस तरह की वृत्तियों से दूषित हो ऐसा नहीं है !आज भी बहुत से ऐसे मंच हैं जहाँ कविता अपने सर्वश्रेष्ठ स्वरूप में विराजित होती है! अभी दो तीन महीने पहले मेरा एक लंबा आलेख  भोपाल से प्रकाशित पत्रिका 'गीत गागर' में आया था!'आज के कवि सम्मेलन बहस और विमर्श की ज़रूरत'!अगले अंक में चिट्ठी पत्री वाले स्तम्भ में आलेख की सराहना पढ़ने को मिली,पाठकों के फोन कॉल्स भी आये! फेसबुक पर पत्रिकाओं में छपने की ख़बरें कम ही शेयर करती हूँ इसीलिए ये भी नहीं की !लेकिन इस आलेख को शेयर न करने का एक कारण ये भी था कि निश्चित तौर पर मैं इस आलेख के कुछ अंश डालती,अपने विचार रखती और मुझे यक़ीनन यहाँ भी समर्थन मिलता, लेकिन इससे हासिल क्या होता? क्यों कि जब तक ऐसे लेख,चर्चाओं,बहस में रखे गए विच