देश से बढ़कर न समझी हमने कोई प्रीत है
ब्याहता है जोश की जो शौर्य से परिणीत है वो शहादत मौत क्या है ज़िन्दगी की जीत है मन में गीता के कथन और तन में फ़ौलादी जुनूं फिर विजय हर जंग में अपनी सदा निर्णीत है घर की देहरी तज बढ़े जो देश रक्षा के लिए चाप उन क़दमों की लगती क्रांतिकारी गीत है माँग सूनी,गोद ख़ाली,कह रही टूटी छड़ी देश से बढ़कर न समझी हमने कोई प्रीत है है नमन शत शत हमारा एक इक जांबाज़ क शत्रु की हिम्मत भी जिनके सामने भयभीत है