दहेज़ एक्ट
लगभग आठ साल पहले जब पहली बार मैं तनु और उसकी माँ से मिली तो उनका रवैया बहुत डरा देने वाला था |वो खा जाने वाली निगाह से हम सबको देख रही थीं, जो सामान हम लाये थे उन्हें एक दो को छोड़ कर सभी महिला कैदियों ने मन से ले लिया था, तनु ने हमसे कहा कि हम कोई ऐसे वैसे नहीं हैं जो ये भीख लें, मैंने कहा 'ये भीख़ नहीं है हम आप सभी से मिलने आये थे तो सोचा .......' उनके चेहरे के हाव भाव देखकर मैं चुप हो गयी ,मैं महसूस कर पा रही थी कि उनके आत्म सम्मान को बहुत ठेस लगी है, वो ज़ोर-ज़ोर से चिल्ला रहीं थीं ‘हम बेगुनाह हैं’ आँखों से जैसे आँसुओं की जगह गुस्सा बह रहा था |मेरा हाथ उन्होंने कस के पकड़ लिया था और कई पन्नों में लिखा कुछ मेरी ओर किया और बोलीं ‘इसे पढ़िए इसमें सब सच लिखा है’मैं बहुत डर सी गयी थी.. लेडी कांस्टेबल ने मुझे उनसे अलग करवाया, और भी महिला कैदियों के चेहरे उनकी कहानियाँ कह देने को आतुर दिखे लेकिन ख़ामोशी से उन सब में सब से ज़्यादा मुखर वही दोनों थी, बाहर आकर मैंने जेलर से उनके बारे में जब पूछा तब उन्होंने बताया कि ये लड़की ऑफिसर पोस्ट पर थी और एक अच्छे परिवार से ताल्लुक रखती है लेकिन ये द...