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फोन मेमोरी को फुल दिखला रहा है

फोन मेमोरी को फुल दिखला रहा ह है मिटाने को बहुत बतला रहा है सुख के दुख के अनगिनत हिस्से हैं इसमें ज़िन्दगी के मुख़्तसर क़िस्से हैं इसमें  मत समेटो ज़िन्दगी सिखला रहा है रात दिन इसमें उलझते जा रहे हैं मुठ्ठियों से पल फिसलते जा रहे हैं क़ैद में कर के हमें इठला रहा है है किसे फ़ुरसत जो देखेगा पुराना हर नए दिन कुछ नया गढ़ता ज़माना जो जियो उस पल जियो जतला रहा है सेल्फियाँ एडिट बहुत सी कर चुके  हम रंग इनमें ख़ूब सारे भर चुके हम जो हैं वो रहने को मन अकुला रहा है