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एक सीधा सा सरल सा मन साथ अपने ले गया बचपन!

एक सीधा सा सरल सा मन साथ अपने ले गया बचपन! फ़िक्र से अंजान रहते थे पंछियों जैसे चहकते थे इंद्रधनु जैसी लिये मुस्कान चुलबुली नदिया सी बहते थे मस्तियो से गूंजता आंगन साथ अपने ले गया बचपन हम थे मौलिक गीत के गायक रह गये अब सिर्फ़ अनुवादक कहने को आज़ाद हैं लेकिन ख़्वाहिशों के बन गए बंधक तृप्ति का,संतुष्टि का हर क्षण साथ अपने ले गया बचपन ! प्रेम को व्यापार कर बैठे ज़िन्दगी रफ़्तार कर बैठे जो नहीं था ज़िन्दगी का सच झूठ वो स्वीकार कर बैठे सच को सच कह्ता हुआ दर्पण साथ अपने ले गया बचपन! होके अपने आप तक सीमित साधते हैं सिर्फ अपना हित स्वार्थ की पगडंडियों पे चल कर रहे हैं ख़ुद को संचालि भोर की किरणों सा भोलापन साथ अपने ले गया बचपन

कुछ संस्मरण

ग़ज़ल यही तो है ! आदरणीय हस्ती मल ‘हस्ती’ जी से मेरा पहला परिचय ‘युगीन काव्या’ के माध्यम से हुआ वो भी बड़े अनोखे ढंग से !हुआ यूँ कि मेरे पिता डॉ उर्मिलेश हिन्दी ग़ज़ल के अति महत्त्वपूर्ण हस्ताक्षर रहे हैं ! उनकी गज़लें देश की विभिन्न पत्रिकाओं मेँ प्रकाशित होती रहती थीं ! अक्सर वे पत्र लिख लिखाकर जब निवृत हो जाते तो मुझे उन लिफ़ाफ़ों को गोंद से चिपका कर बंद करने का काम दे देते थे उन्हीं लिफ़ाफ़ों में से एक लिफ़ाफ़े पर ये एक पता लिखा होता-   सेवार्थ, श्री हस्ती मल ‘हस्ती’  संपादक  युगीन काव्या  फिर बाद में कहीं अन्तर्मन में रह गया ये नाम एक दिन जगजीत सिंह जी की गज़लों की अल्बम ‘फेस टू फेस’ पर नज़र आया और फिर जैसे जैसे गज़लों से मुहब्बत बढ़ती गयी तो पत्रिकाएँ पढ़ने का भी शौक बढ़ने लगा और फिर वहाँ से  हस्ती जी की गज़लों के माध्यम से उन्हें जानना पहचानना प्रारम्भ हुआ ! पहचानना इसीलिए कह रही हूँ क्यों कि मुझे हमेशा उनको पढ़कर लगता था कि हो न हो हस्ती जी भी अपनी गज़लों की तरह सरल,सहज और सजग व्यक्तित्व होंगे ! क्यों कि हमेशा लेखनी और करनी एक ही हो ऐसा ज़रूरी नहीं !रचनाकार का व्यक्तित्व अगर उसकी रचनाओं मे प्रतिबिम्