सरल-सुशील-शांत-सज्जन-सुकवि श्रेष्ठ, जैसे वह भीतर हैं वैसे ही समक्ष हैं। वाणी के उपासक दिखावे से बहुत दूर, काव्य में नरोत्तम-नरोत्तम से लक्ष हैं।। तन-मन-धन द्वारा जन-चेतना में रत, विरत प्रसिद्धि-सिद्धि की कला में दक्ष हैं। भरथरी -से गायक विराग-राग-नीति के हैं, भूपराम 'भूप' भतरी के कल्पवृक्ष हैं।। ये उद्गार पंडित भूपराम शर्मा भूप के प्रति कवि श्रेष्ठ डॉ ब्रजेन्द्र अवस्थी के हैं। ज़िला बदायूँ के अंतर्गत आने वाले गाँव भतरी गोवर्धनपुर में जन्मे पंडित भूप राम शर्मा भूप को हम जनकवि के रूप में जानते हैं। भूप जी ने अपने आसपास जैसा देखा वैसा गाया। उन्हीं के शब्दों में 'मिल पाया प्यास बुझाने को केवल अपना ही कूप मुझे।' भूप जी ने कभी कॉफ़ी हाउस में बैठ कर कविता के तत्व के लिए संघर्ष नहीं किया। उनकी कविता का कथ्य उनके परिवेश का जीवंत यथार्थ है। ठेठ देहाती भूप जी के पुरखे बड़े प्रसिद्ध राजवैद्य एवं कवि थे। कविता का च्यवनप्राश भूप जी को घुट्टी में मिला। शिक्षा दीक्षा इतनी हुई कि मास्टरी मिल गयी। उस ज़माने में विशारद और संस्कृत की प्रथमा-मध्यमा परीक्षाएँ आज की पी-एच.डी. से कम नहीं मानी...