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गुज़ारिश मेरी बहारों से

सुब्ह फूलों से रात तारों से ज़िन्दगी है इन्हीं नज़ारों से मुक्त होती तो और कुछ होती मैं नदी हूँ तो हूँ किनारों से ख़ुद पे इतना यक़ीन करती हूँ दूर रहती हूँ मैं सहारों से हर कोई चाँद से था बाबस्ता मुझको निस्बत थी बस सितारों से अब जो आएं तो फिर न जाएं कभी है गुज़ारिश मेरी बहारों से