नया साल
समय और अनुभव समानांतर चलते हैं। दोनों मिलकर जीवन को स्पष्ट करते चलते हैं।इस वर्ष कुछ ज़्यादा स्पष्टतायें महसूस हुईं हमें।जीवन की अनिश्चितता ने वर्तमान को जीना ज़्यादा सिखाया भविष्य को कम।निर्लिप्तता का महत्व समझा है।कविता ने मुझ पर बड़ा परोपकार किया है। थोड़ा और समझा है क्यों हूँ मैं,क्या हूँ मैं,क्या होना चाहती हूँ मैं। मैंने अपने मन का समय ख़र्च करना सीखा। वहाँ बचाया ख़ुद को जहाँ मेरा जाया होना निश्चित था।रो ली जब रोना आया बिना झेंपे, हँसी भी ऐसे ही।अब और ज़्यादा धैर्य से सुनती हूँ उनको जिनको ज़रूरत है एक भरोसेमंद सुनने और समझने वाले की।कहने भी लगी हूँ वो बातें जो मैं ख़ुद से ज़्यादा करती थी।मैंने उम्र को अपनी चन्चलताओं पर रोक नहीं लगाने दी।गिलहरी बनी रही।अच्छा लगा कि मेरे जैसे कई नए लोग इस साल जुड़े।मैं अपने मत पर और दृढ़ हुई कि स्वयं की स्वीकार्यता ही सर्व स्वीकार्यता की पहली सीढ़ी है। कृतज्ञता का भाव थोड़ा और बढ़ा। मुक्ति और बन्धन के डोर में पड़े झूले में ख़ूब झूली। ईर्ष्यालु,अहमी,अस्वस्थ आलोचनाकों,असम्वेदनहीनों और ऐसी ही अनेक दुर्भावनाएं रखने वालों को देखकर दुखी हो जाती हूँ, खीझत...