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मार्च, 2013 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

ग़ज़ल

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 ख़ुद  को    मत इंसान समझिए  अच्छा है ,हैवान समझिए  चीखें,टीसें,ज़ख़्मी आँखें  शहरों को शमशान समझिए  मौली चूड़ी ,फ़ीकी मेंहदी  टूटे हैं अरमान समझिए  ग़म का चूल्हा ,रोटी उनकी ख़ूनी दस्तरखान समझिए मातमपुर्सी वक़्ती है अब सब हैं बेईमान समझिए  ख़ातिरदारी  थोड़ी   करिये   शातिर हैं मेहमान समझिए रोज़ ब रोज़ मिलेंगे काँटें फूलों की पहचान समझिए रौनक अफज़ा दिखते हैं ,पर भीतर हैं सुनसान समझिए ............................................हालातों का जायज़ा , लफ़्ज़ों की हिदायतें ! .................................................सोनरूपा !!