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फूल सबके लिए महकते हैं

फूल सबके लिए महकते हैं लोग लेकिन कहाँ समझते है ज़िन्दगी जी रहे हैं हम लेकिन ज़िन्दगी के लिए तरसते हैं वक़्त का एक नाम और भी है लोग मरहम भी इसको कहते हैं रोज़ मिलते नहीं हैं हम ख़ुद से रोज़ ख़ुद से मगर बिछड़ते हैं फूल जैसे जो खिल नहीं पाते फूल जैसे वही बिखरते हैं वक़्त में ख़ासियत है क्या ऐसी वक़्त के साथ सब बदलते हैं

कब तक ?

‘ जब वी मेट’ फिल्म के सीन की तरह क्या हम कागज़ पर ख़ूब भद्दी भद्दी गालियाँ लिखें और उस काग़ज़ को  फ्लश्ड आउट  करके अपनी नाराज़गी को कम कर लें?या आश्चर्य करें इन कमज़र्फों पर जिनकी ज़बान को ताक़त देने वाली मांसपेशियाँ हमारे खून से बनी हैं ! बाहर अंदर ख़ूब शोर है एक पार्टी के सामान्य से नेता द्वारा दलितों की हितैषी कही जाने वाली एक पार्टी की महिला राष्ट्रीय अध्यक्ष के बारे में बेहद ख़राब टिप्पणी की वजह से ! आज दिन सूरज की गर्मी से कम इस घटनाक्रम के ख़िलाफ़ प्रदर्शन से ज़्यादा तपा ! गालियों का विरोध गालियों से ! तेरी माँ होती तो,तेरी बहन होती तो! राजनीति की चालें हम समझते हैं लेकिन  निशाना यानि हम यानि स्त्रियाँ ! क्यों भई? निशाना यानि हम यानि स्त्रियाँ! हम पर तीर चलाने वाला तीरंदाज़ कभी मायूस नहीं होगा क्यों हम वो शिकार हैं जो उसके दायरे में हमेशा से रहे हैं !चरित्रहीनता का सर्टिफिकेट तो स्त्रियों को सेकेंड्स में दे दिया जाता है! अगर आपके वुजूद में राष्ट्रपति,मुख्यमंत्री,एस्ट्रोनोट,रेसलर,पायलट आदि जैसी उपलब्धियाँ शामिल होंगी तब कहा जायेगा कि 'ओहो....एक औरत होकर’ !

पल पल दिल के पास

'आंवला' हमारे यहाँ से 24 किलोमीटर दूर, हमारी बुआ जी का घर ! ऐसे ही तपन भरे दिन और उनके घर तक का रास्ता,और रास्ते में जामुन के ख़ूब सारे पेड़ और एक ज़िद उन पेड़ों के रखवाले से कि 'भैया हमसे पैसे ले लो लेकिन हमें अपने हाथों से जामुन तोड़ने दो '! ऐसे ही हमारे घर के पास एक मस्जिद उसके पास लगे खट मिट्ठू दोस्त यानि आड़ू, शहतूत और इमली का एक-एक पेड़ और एक इंतज़ार 'कि कब ये पकें और कब हम खाएं'! ऐसे ही बरेली के रास्ते पीले-पीले फूलों से संवरे कुछ पेड़ और एक चाह 'कि इनके साथ मुझे फ़ोटो क्लिक करवाना है ,मेरे सफ़ेद आउटफिट के साथ ये पीले फूल कितने अच्छे लग रहे हैं,इसका डी पी बहुत प्यारा लगेगा ! और आज घर से दिल्ली तक का सफ़र,घनी धूप में सड़क के दोनों ओर नारंगी छतरी से तने गुलमोहर के ख़ूबसूरत पेड़ और एक ख़ुशी' कि उफ़्फ़ कितने सुंदर'! लेकिन फिर डर और फ़िक़्र कि ये भी कहाँ ज़्यादा दिन रहेंगे कि जैसे जामुन,पीले फूलों वाले पेड़,मेरे आड़ू,शहतूत और इमली के पेड़ काट डाले गए हमारी भौतिक सहूलियतों के लिए ! और यूँ भी मानसिक सहूलियतों की टूट फूट की मरम्मत के लिए हमारा मन ही कारीगर है ! अब

पांडुलिपि पूरी करें हम प्यार की

पांडुलिपि पूरी करें हम प्यार की भाग्य को लिख पंक्तियाँ आभार की साथ मिल हमने रचा है प्रीत को जी रहे हैं श्वांस में संगीत को भावविह्वल है हमारी ज़िन्दगी देख कर हम पर ह्रदय की जीत को इन पलों के सागरी विस्तार की पांडुलिपि पूरी करें हम प्यार की हम क्षणों को गूँथ लें इतना सघन गंध से आबद्ध ज्यों रहता सुमन शिल्प हो जैसे कि हिम की श्रृंखला और नदी सा हो तरंगित हर कथन  आसमां जैसे विशद आकार की पांडुलिपि पूरी करें हम प्यार की