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ग़ज़ल

ग़ज़ल  काग़ज पे घर बहुत से बनाये गए हैं आज   बेघर को सब्ज़  बाग़ दिखाए  गए हैं आज  अख़बार की कतरन में चमकने के वास्ते  बेबात के भी जश्न मनाये गये हैं आज  मायूसियाँ कहीं इन्हें वीरान न कर जाएँ  कुछ हसरतों के मेले लगाये गये हैं आज  हर रात पूछता है बिस्तर मेरा मुझसे  आँखों में कितने ख़्वाब सजाये गये हैं आज 

सूना सूना है सावन तुम्हारे बिना

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ये अंश हैं मेरे पिता डॉ.उर्मिलेश के १९९४ में प्रकाशित पहले संग्रह ‘धुँआ चीरते हुए’में से जिसमें  वे अपनी सृजन यात्रा के कुछ पल याद करते हुए लिखते हैं  “मैंने पहली ग़ज़ल अगस्त १९७१ में हिंदी के मौलिक ग़ज़ल कार स्व.बलवीर सिंह रंग की ग़ज़ल ‘सूनी सूनी है होली तुम्हारे बिना /जिंदगी है ठिठोली तुम्हारे बिना ‘ से प्रभावित होकर लिखी थी (तब ग़ज़ल कहता था लिखता नहीं था ) मेरी पहली ग़ज़ल थी ‘ सूना सूना है सावन तुम्हारे बिना , अब ना लगता कहीं मन तुम्हारे बिना /मंदिरों में गया तो यही स्वर सुना , व्यर्थ जायेगा पूजन तुम्हारे बिना |उस   ग़ज़ल में नौ शेर थे सबमे हिंदी के तत्सम शब्दों का प्रयोग था | मेरी ग़ज़लों अगस्त ७१ से सन ७५ तक की ग़ज़लों में हिंदी के तत्सम शब्दों का आग्रह कुछ अधिक ही रहा |बाद की ग़ज़ल परिवेशगत यथार्थ को उद्घाटित करने वाली थीं उनकी भाषा ,बोलचाल की भाषा के बहुत नज़दीक होती गयी यह सब सायास नहीं हुआ | अत्यंत सहज और अनारोपित ढंग से यह बदलाब आता गया | सोच और भाषा दोनों ही स्तर मैंने बदलाब को आने दिया ,इसे बाधित नहीं होने दिया” “..........................................

शुभकामनायें

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स्वतंत्रता दिवस की आप सभी को  बहुत बहुत शुभकामनायें  भारत के अंग्रेजों से स्वतन्त्र होने की ६५ वीं वर्षगाँठ पर सब भारतवासियों को स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनायें ............... शीघ्र ही हम स्वयं भी तंत्र के साथ "स्व -तंत्र 'होने की वर्षगाँठ मनाएँ ........... ~ हिंद जय भारत ~