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सितंबर, 2012 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

असमंजस

क्या लिखूँ ? अ भी हाल ही में कई मौकों पर ब्लॉग और फेसबुक कुछ पोस्ट करते हुए हाथ रुक गए, हुआ यूँ कि पिछले कुछ दिनों पहले अपने देश में ‘खेल दिवस’ मनाया गया तो सोचा कि कुछ इससे रिलेटेड पोस्ट किया जाये लेकिन पोस्ट करती इससे पहले ही ‘हिन्दुस्तान’ अखवार में एक आर्टिकल पढ़ने को मिला जिसका टाइटल था ‘चीन कैसे बना खेलों में सुपर पॉवर’ ...चीन में आज कल एक स्लोगन 'च्च्वी क्व्थी च’ बड़ा प्रसिद्ध है ,इसका मतलब है –खेलों में पूरी शक्ति लगा देना|सरकार और खेल विभाग पूरी तरह इस पर अमल करते हैं विश्व स्तरीय एथलीट बनाने की प्रक्रिया बचपन से ही शुरू हो जाती है किंडरगार्टन से ही प्रतिभावान बच्चों को चुन लिया जाता है और उसका रिज़ल्ट तो हम देख ही  रहे हैं कि लन्दन ओलंपिक में ३८ पदक जीत कर वो अमेरिका से पीछे था ऐसा ही बहुत कुछ जान लेने के बाद  तो एक वारगी लगा कि अपने मित्रों को खेल दिवस की शुभकामना देकर क्यों औपचारिकता निभाई जाये जब कि हम जानते हैं हमारे यहाँ खेल और खिलाड़ी मुश्किलों से  सरवाइव कर पा रहे हैं ........ फिर कुछ दिन से बड़ा शोर हो रहा है ‘सोशल मीडिया पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता कितनी