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गुज़ारिश मेरी बहारों से

सुब्ह फूलों से रात तारों से ज़िन्दगी है इन्हीं नज़ारों से मुक्त होती तो और कुछ होती मैं नदी हूँ तो हूँ किनारों से ख़ुद पे इतना यक़ीन करती हूँ दूर रहती हूँ मैं सहारों से हर कोई चाँद से था बाबस्ता मुझको निस्बत थी बस सितारों से अब जो आएं तो फिर न जाएं कभी है गुज़ारिश मेरी बहारों से

चलो आज अपने मन का इक दिन जीकर देखें

चलो आज अपने मन का इक दिन जीकर देखें सोच-सोच रह गए जिसे हम वो भी कर देखें बन्द पड़ी मीठी यादों की अलमारी खोलें उसमें से बचपन पहने लट्टू बन कर डोलें और लड़कपन फिर खिलता अपने भीतर देखें जीवन के पल दोहराएं हम जो हैं मनभावन कोई क्या सोचेगा मन से दूर करें उलझन शर्बत में थोड़ी सी बेफ़िक्री पीकर देखें पौधों सा धरती से ख़ुद को हम जुड़ जाने दें मौसम से ख़ुशबू से ख़ुद को इश्क़ लड़ाने दें छोटी-छोटी हर ख़्वाहिश हम पूरी कर देखें बिस्तर पर अलसाये औंधे पड़े रहें तब तक हाथ पकड़ कर शाम कहे 'उठ भी जाओ'जब तक काश कभी ऐसे ढीले ढाले जीकर देखें

एक सीधा सा सरल सा मन साथ अपने ले गया बचपन!

एक सीधा सा सरल सा मन साथ अपने ले गया बचपन! फ़िक्र से अंजान रहते थे पंछियों जैसे चहकते थे इंद्रधनु जैसी लिये मुस्कान चुलबुली नदिया सी बहते थे मस्तियो से गूंजता आंगन साथ अपने ले गया बचपन हम थे मौलिक गीत के गायक रह गये अब सिर्फ़ अनुवादक कहने को आज़ाद हैं लेकिन ख़्वाहिशों के बन गए बंधक तृप्ति का,संतुष्टि का हर क्षण साथ अपने ले गया बचपन ! प्रेम को व्यापार कर बैठे ज़िन्दगी रफ़्तार कर बैठे जो नहीं था ज़िन्दगी का सच झूठ वो स्वीकार कर बैठे सच को सच कह्ता हुआ दर्पण साथ अपने ले गया बचपन! होके अपने आप तक सीमित साधते हैं सिर्फ अपना हित स्वार्थ की पगडंडियों पे चल कर रहे हैं ख़ुद को संचालि भोर की किरणों सा भोलापन साथ अपने ले गया बचपन

कुछ संस्मरण

ग़ज़ल यही तो है ! आदरणीय हस्ती मल ‘हस्ती’ जी से मेरा पहला परिचय ‘युगीन काव्या’ के माध्यम से हुआ वो भी बड़े अनोखे ढंग से !हुआ यूँ कि मेरे पिता डॉ उर्मिलेश हिन्दी ग़ज़ल के अति महत्त्वपूर्ण हस्ताक्षर रहे हैं ! उनकी गज़लें देश की विभिन्न पत्रिकाओं मेँ प्रकाशित होती रहती थीं ! अक्सर वे पत्र लिख लिखाकर जब निवृत हो जाते तो मुझे उन लिफ़ाफ़ों को गोंद से चिपका कर बंद करने का काम दे देते थे उन्हीं लिफ़ाफ़ों में से एक लिफ़ाफ़े पर ये एक पता लिखा होता-   सेवार्थ, श्री हस्ती मल ‘हस्ती’  संपादक  युगीन काव्या  फिर बाद में कहीं अन्तर्मन में रह गया ये नाम एक दिन जगजीत सिंह जी की गज़लों की अल्बम ‘फेस टू फेस’ पर नज़र आया और फिर जैसे जैसे गज़लों से मुहब्बत बढ़ती गयी तो पत्रिकाएँ पढ़ने का भी शौक बढ़ने लगा और फिर वहाँ से  हस्ती जी की गज़लों के माध्यम से उन्हें जानना पहचानना प्रारम्भ हुआ ! पहचानना इसीलिए कह रही हूँ क्यों कि मुझे हमेशा उनको पढ़कर लगता था कि हो न हो हस्ती जी भी अपनी गज़लों की तरह सरल,सहज और सजग व्यक्तित्व होंगे ! क्यों कि हमेशा लेखनी और करनी एक ही हो ऐसा ज़रूरी नहीं !रचनाकार का व्यक्तित्व अगर उसकी रचनाओं मे प्रतिबिम्

नक़्क़ाशीदार कैबिनेट

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【अमेरिका यात्रा के संस्मरणों को लिखना अमेरिका से लौट कर मेरी प्राथमिकताओं में से था !क्यों कि प्राथमिकता थी तो लिखना प्रारंभ कर दिया!जो समझा, जो जाना, जो देखा उसे लिखने में कोई अड़चन नहीं थी लेकिन जहाँ बात यहाँ के जीवन शैली की थी उसमें आवश्यकता थी कि जो लिखूँ वो मात्र कुछ दिनों में जो मैंने महसूस किया उसका सार न हो बल्कि उसमें प्रमाणिकता हो ! मुझे सुधा ओम ढींगड़ा याद हो आईं ! नार्थ केेरोलिना के रालेह में हुई उनसे यादगार और रोचक मुलाक़ात ने और अमेरिकी जीवन शैली पर हुई सार्थक बातचीत ने मुझे उनका नाम याद रह जाने में मदद की!यूँ भी मैं उनके लेखन की क़ायल पहले से रही हूँ!एक उत्कृष्ट कहानीकार के रूप में वे हिंदी साहित्य में अपनी विशिष्ट पहचान रखती हैं! मैंने उन्हें अपनी पांडुलिपि भेजी,फोन पर बात की ,कुल मिलाकर मुझे बहुत संतुष्टि हुई और जो कुछ उनसे जानने को मिला उसे मैंने डायरी में दर्ज कर लिया!इस दौरान उन्होंने मुझे उनके एक कहानी संग्रह को पढ़ने की सलाह दी जिसे पढ़कर मैं यहाँ की जीवन शैली और सोच को और अधिक जान सकती थी!उन्होंने मुझसे मेरे घर का पता लिया और किताब भेजने की बात कही ! मैं इंतज़ार कर

अमेरिका डायरी

अभी दो दिन पहले अमेरिका के कुछ अनुभव और चित्र मैंने आप सब से साझा किए थे! मन था कि पहले कार्यक्रम हो जाये तब कुछ साझा करूँ! उसका कारण ये था कि जिस कार्य के लिए यहाँ आये हैं पहले वो ज़िम्मेदारी सही से निभा लें यानि एक बार कवि सम्मेलन सफल हो जाये तो संतुष्ट हो जाएं लेकिन यहाँ सबकी आवभगत,कर्मठता,प्रेम देख कर  मन नहीं माना ! कल इंडियाना स्टेट की राजधानी और यू एस के दस बड़े शहरों में शामिल इंडियानापोलिस में हम कार्यक्रम करके हम आज ह्यूस्टन में हैं ,शाम को कार्यक्रम है!  परसों डैलस में और कल इंडियाना में...दोनों जगह कार्यक्रम ने जिन बुलंदियों को छुआ है उससे मुझे आज संतुष्टि हुई है !वर्ष भर की खोज और जानकारी ले लेने के बाद यहाँ आयोजक किसी नाम पर एकमत होते हैं और कवियों को आमंत्रित करते हैं!देश के विख्यात कवि गण अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति द्वारा आमंत्रित किये जा चुके हैं !मैं अपने लिए थोड़ा संशकित थी चूँकि मुझे बहुत ज़्यादा वक़्त नहीं हुआ है मंच पर! तो ख़ुद से अपेक्षा मैंने भी कम नहीं रखी थीं!हमेशा से संकल्पित हूँ कि मंच से उत्तम कविता को ही मैं स्वर दूँगी!  ईश्वर को धन्यवाद कि सब बहुत अच्छा हो गया,