संदेश

अप्रैल, 2014 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

चलते फिरते

दो दिन पहले जी आई पी मॉल के सामने मैं आइस क्रीम से पार्ट टाइम ठंडी एन्जॉय कर रही थी कि वहां मौजूद ज़ी न्यूज़ की संवाददाता ने राय जानने के लिए मेरे आगे माइक कर दिया'३० सेकंड्स में आप हमें बता सकती हैं कि क्या आम महिलाओं के लिए राजनीति में आना मुश्किल है ?अगर वो आती भी हैं तो उनके फ़ैसले उनके नहीं होते,क्या उनकी वजाय उनके पति या उनके राजनीतिक अभिभावक उनके थ्रू रूल करते हैं ?  मैंने उनसे कहा- मैडम ये भी कोई पूछने की बात है , हम स्त्रियों के साथ तो मुश्किलें गर्भ से ही दोस्ती निभाती आ रही हैं बात कीजिये दूसरी वो ये कि 'हमारे यहाँ कौन सी गवर्नमेंट ऐसी है जिसका ख़ुद का रूल चलता हो!कोई भी फ़ैसला लिखा एक पेन से जाता है लेकिन स्याही देने वाले इस शर्त के साथ स्याही सप्लाई करते हैं कि"हमारा भी ध्यान रखना"! इस पर वो संवाददाता बोली कि आप बस वो ही बोलिए जो हम चाहते हैं ! मैंने कहा ..चलिए बोलते हैं कीजिये कैमरा ऑन !

गुफ़्तगू

चित्र
अपने दोस्तों को अलग-अलग नामों से पुकारे जाने की, चिढने-चिढ़ाने की परम्परा है बचपन की  ,मैं भी अजब-गज़ब नामों से अपने दोस्तों को आवाज़ देती थी ,मुझे उस वक़्त आज की तरह  फ़िक्र कहाँ थी कि उस दोस्त को बुरा लगा या भला ?सच्ची मुच्ची ,कच्ची पक्की जैसे शब्दों में हमारी दोस्ती फुटबॉल खेलती रहती थी ! कल रात ऐसे ही मैंने दोस्तों की यादों के  साथ बचपन की पिच पर फुटबॉल   मैच खेल रही थी कि चाँद ने आवाज़ दी और बोला ....... ." सुनो मेरा भी एक दोस्त है उसका नाम है गुलज़ार,वो ७६ साल का है और मैं हजारों साल पुराना, तुम्हारी तरह वो भी मुझे बहुत सारे नाम देता है !उससे नाराज़ होना तो दूर मैं तो उसके कंधे पर हाथ रखकर उसकी ख़ुशामद करते हुए अक्सर कहता हूँ यार गुलज़ार तुम ही जो मुझे बूढ़ा नहीं होने देते,तुम अब भी मुझसे करतब करवाते हो ,जब चाहे किसी भी सांचे में मुझे ढाल देते हो और मैं उफ़ भी नहीं करता"! मैंने भी चाँद से एटीट्यूड से  कहा "  ओ चाँद ,मुझे भी अपनी फ़ेरहिस्त में शामिल करो क्यों कि मैंने भी अपने कई लम्हे गुलज़ार के लफ़्ज़ों के बैंक  में फिक्स डिपाज़िट करवा दिए हैं" ! - गुलज़