संदेश

फ़रवरी, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

तुम्हारे लम्स की ख़ुश्बू थी, इसमें मुझे ये पैरहन धोना नहीं था

तुम्हारे लम्स की ख़ुश्बू थी इसमें मुझे ये पैरहन धोना नहीं था नैशविल का कवि सम्मेलन था वो, हर जगह लगभग 3 घण्टे के कार्यक्रम के बाद श्रोताओं से इंट्रेक्शन भी ख़ूब होता था।इसी दौरान एक 30 से 35 साल के बीच का एक युगल जो बहुत देर से मुझे देख रहा था,मेरी ओर आया। दोनों पति पत्नी थे ,कानपुर IIT से पढ़ कर अब यहाँ कुछ सालों से अमेरिका में सेटल थे। हेलो मैम... कह कर पत्नी मुझसे बोली कि ...मे आई टच योर हैंड्स। मैंने कहा- श्योर। उन्होंने मेरा हाथ छुआ फिर दोनों हथेलियों से पकड़ कर भावुक होती हुई बोलीं-इस शेर ने मुझे मेरी माँ की याद दिला दी। मैंने कहा- कैसे? वो बोलीं कि मैं एक शहीद की बेटी हूँ।मेरे पापा तब शहीद हो गए जब हम बहुत छोटे थे। मेरी माँ ने पापा के बाद बहुत दुख झेला।पापा के कपड़ों को आज भी माँ जान से ज़्यादा सहेज कर रखे हुए है।वो उनको जीवित मानती हैं।उनकी ख़ुश्बू को महसूस करती हैं।उनका यही विश्वास उनका हौसला है और आज हम यहाँ पर हैं तो उसके पीछे उनकी यही हिम्मत थी।तीन सालों से उनसे मिल नहीं पाई हूँ आज और ज़्यादा याद आ गई उनकी। मैं चुप थी, मेरा ये साधारण शेर किसी को इतना द्रवित कर गया।मैंने जब ये शेर क