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एक इमोशनल फ़ूल के कुछ मुश्किल पल और उसकी जकड़न

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अगर मैंने दिवम पूछा-दिवम...आज आपके स्कूल में पाकिस्तान में पेशावर के आर्मी स्कूल में मारे जाने वाले बच्चों के लिए साइलेंस रखा गया था |तब मैंने ये नहीं कहा कि आपको मालूम है कि हमारे साइलेंस रखने पर या उन बच्चों के लिए संवेदना जताने पर कुछ लोगों का कहना है कि जब मुंबई में २६/११ का हमला हुआ तो क्या पाकिस्तानियों ने हमारे लिए संवेदना जताई थी जो हिन्दुस्तानी आँसू बहा रहे हैं और पाकिस्तानी भी इतने बदसूरत मंज़र के बात भी नहीं चेते हैं | मुझे मालूम है एक बच्चा संवेदनायें दिल से महसूस करता है भले ही ‘संवेदना’ शब्द उस बच्चे के लिए समझना सबसे कठिन हो | अगर बच्चों ने पूछा...मम्मा संसद किसे कहते हैं ? मैंने संसद के बारे में समझाते हुए ये बिलकुल नहीं बताया कि हमारे रीप्रिसेंटेटिव यहाँ हाथापाई भी करते हैं,गाली देते हैं कुर्सियां फेंकते हैं | अगर कभी मैं बच्चों से धर्म के बारे में बात करूँगी तो यही कहूँगी कि तुम इंसानियत को अपना धर्म मानना लेकिन बचूँगी ये बताने से ‘कि जिस देश में तुम रहते हो वहाँ धर्म में अंधभक्ति सिखाई जाती है,सबसे ज़्यादा फ़साद धर्म की वजह से होते हैं,धर्म सबसे ज़्यादा लची