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वो अपने आप को मंज़िल नहीं बनाएगा

नदी बनाएगा साहिल नहीं बनाएगा वो अपने आप को मंज़िल नहीं बनाएगा कहाँ से लाऊँ मैं वो ख़्वाब अपनी आँखों को जो मेरी नींद को बोझिल नहीं बनाएगा वो जब बनायेगा इस दौर का कोई इंसा बदन तो देगा मगर दिल नहीं बनाएगा तो फिर सफ़र की कहानी अधूरी रहनी है   अगर वो रास्ता मुश्किल नहीं बनायेगा मेरा मिज़ाज मुझे और कुछ न दे लेकिन मुझे ज़मीर का क़ातिल नहीं बनाएगा इक ऐसे चेहरे को अक्सर तलाश करती हूँ मेरी नज़र को जो धूमिल नहीं बनाएगा