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मन के काग़ज़ पर इक दुनिया रोज़ बनाती हूँ।

मन के काग़ज़ पर इक दुनिया रोज़ बनाती हूँ। फिर उस दुनिया के मैं क्या क्या ख़्वाब सजाती हूँ ख़्वाब कि 'जिसमें फूलों जैसा दिल रखते हों लोग औरों के सुख दुख को भी अपना कहते हों लोग ख़्वाब कि 'जिसमें दूर ज़हन से नफरत का तम हो हर मौसम बस प्यार प्यार बस प्यार का मौसम हो  इन अभिलाषाओं के दीपक रोज़ जलाती हूँ। ख़्वाब कि 'जिसमें कोई भूखे पेट न सो पाये जीने का अधिकार और सम्मान न खो पाए ख़्वाब कि 'जिसमें स्वर्ग सी धरती की इक आशा हो मेरी दुनिया की भाषा बस प्यार की भाषा हो  सच होंगें मेरे सपने ख़ुद को समझाती हूँ। ख़्वाब कि 'जिसमें नारी को नारी सा मान मिले हर बचपन के चेहरे पर हरदम मुस्कान खिले ख़्वाब कि 'जिसमें हर यौवन सदराह पे चलता हो और बुज़ुर्गों का जीवन मजबूर न दिखता हो ऐसी सुन्दर दुनिया की बुनियाद उठाती हूँ।

मुस्कुरा लें आज या ख़ुद को रुला लें

रोक रक्खी भावनाओं को बहा लें मुस्कुरा लें आज या ख़ुद को रुला लें  चित्र अनदेखा सा इक उभरा हुआ है रौशनी का हर क़दम ठहरा हुआ है सब हुलासें सब मिठासें गुम गयी हैं मन का चेहरा आजकल उतरा हुआ है  दूधिया एकांत का उबटन लगा लें मुस्कुरा लें आज या ख़ुद को रुला लें  ख़ुद को ख़ुद की ग़लतियों पर डाँट लें हम बस हरापन और सूखा छाँट लें हम  अपनी बाँहों में सिमट आने दें ख़ुद को एक दूजे को बराबर बाँट लें हम  अनछुए सपनों की फिर गृहस्थी बसा लें  मुस्कुरा लें आज या ख़ुद को रुला लें  डर बहुत पक्का है घर कच्चा अगर है नींद की फसलों पे आँधी का कहर है पार पाना पार जाने से है मुमकिन अन्यथा मुश्किल भरा सारा सफ़र है  पर्वती बेचैनियों को हम ढहा लें मुस्कुरा लें आज या ख़ुद को रुला लें

जब निरन्तर राह पे आगे बढ़ी मैं ज़िन्दगी के रूप को पहचान पाई

आप हस्ताक्षर करें अस्तित्व पर जब क्या स्वयं को मैं तभी स्वीकृत करूँगी  कोटरों की ओट में जीवन न होगा  प्लेट सी गोलाई में नर्तन न होगा मन्ज़िलों का रूप धुँधलाएगा निश्चित स्वप्न की गन्धों का ग़र लेपन न होगा उड़ मैं सकती हूँ अगर पंछी सदृश तो बाँह भर आकाश ही आवृत करूँगी जो अपरिचित था उसे मैं जान पाई अपनी आवाज़ों को अपना मान पाई जब निरन्तर राह पे आगे बढ़ी मैं ज़िन्दगी के रूप को पहचान पाई  आत्मविश्लेषण लिखूँगी जब कभी फिर क्यों किसी की पंक्तियाँ उद्धृत करूँगी  धूप में क्या लकड़ियाँ तापी गयी हैं अपनी ही परछाइयाँ नापी गयी हैं शुभ की निर्मल कामना की भित्तियां क्या निर्जनी दीवार पर थापी गयी हैं ऊसरी धरती पे यदि चलना पड़ा तो स्वयं को जलधार बन कृत कृत करूँगी