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नवंबर, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

अपने जज़्बात रोकना सीखा, मैंने दरिया को सोखना सीखा

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  ||ग़ज़ल|| अपने जज़्बात रोकना सीखा, मैंने दरिया को सोखना सीखा. पहले दिल से मैं काम लेती थी, अब ज़हन भी टटोलना सीखा. जिस पे चलती थी बेसबब अब तक, मैंने रस्ता वो छोड़ना सीखा. घर की खिड़की ही खोलती थी मैं, मन की खिड़की भी खोलना सीखा. रोज़ लिख-लिख के चिट्ठियाँ ख़ुद को, मैंने चुपचाप बोलना सीखा. अपनी ख़ुश्बू को लौटता पाकर, फूल सारे बटोरना सीखा. सोचते वक़्त तेरे बारे में, अपने बारे में सोचना सीखा. #sonroopa_vishal #indianpoetess #hindigeet #hindipoetry #प्यार_होता_नहीं_तो_होता_क्या

पुरुष दिवस

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  ||पुरुष दिवस|| पुरुष को पौरुष से परिभाषित किया जाना ही पुरुष के लिए सबसे कठिन है।वो सिद्ध करता रहता है स्वयं को इसी परिभाषा के खाँचे में। वो मज़बूत है ,शक्तिवान है,सक्षम है लेकिन उसे भी होना है भावुक,कोमल,रो देने वाला,कह देने वाला कि मुझसे नहीं निभ पायेंगी सब ज़िम्मेदारियाँ,जी लेने वाला कभी सिर्फ़ अपने लिए। दरअसल वो बाहर से पूरा दिखता है पर अंदर से अधूरा है।उसे डूब कर उबरना है,उसे रोकर हँसना है,उसे गिरकर सम्भलना है। स्त्रियों हो जाने दीजिए उसे ऐसा ,बन जाइये उसके लिए एक कंधा,एक रूमाल,एक उँगली। आज दुनिया पुरुष दिवस मना रही है उसने तुम्हारे स्त्रीत्व को पूर्णता दी है तुम उसके पुरुषत्व को पूर्णता देना। ~सोनरूपा #mensday #sonroopa_vishal #प्यार_होता_नहीं_तो_होता_क्या

'दैनिक जागरण विमर्श' कार्यक्रम के अंतर्गत दैनिक जागरण द्वारा सम्मान

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  'दैनिक जागरण विमर्श' कार्यक्रम के अंतर्गत दैनिक जागरण द्वारा सम्मान. ज़िला पंचायत अध्यक्ष रश्मि पटेल जी,शिक्षाविद वंदना शर्मा जी एवं उद्यमी शारदा भार्गव जी के हाथों ये सम्मान प्राप्त हुआ.अच्छा लगा साथ ही एक बार फिर महसूस हुआ कि सोनरूपा ज़िम्मेदारियाँ बढ़ रही हैं तुम्हारी #sonroopa_vishal #दैनिकजागरण #दैनिकजागरणविमर्श2021

छठ पर्व पर

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  इधर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में छठ नहीं होती.लेकिन जब से संचार के माध्यम बढ़े तब से त्योहार केवल विशेष क्षेत्र के न हो कर सबके से हो गए.और हम भारत वासी हैं भी तो उत्सव प्रेमी.हर त्योहार मनाना चाहते हैं.हमारे यहाँ मेरा-तुम्हारा नहीं बल्कि एकत्व प्रबल है. अभी घर लौटी तो सबसे पहले टी.वी. खोला.उत्सुक थी अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देती हुई स्त्रियों को देखने के लिए.इस समय लंबी माँग भरी,चटक साड़ियाँ पहनी व्रती स्त्रियाँ पूजन सामग्री लिए जल में बस उतर ही रही हैं पूजन के लिए.कितना कठिन व्रत होता है छठ का लेकिन निष्ठा और आस्था के समक्ष सारी कठिनाइयाँ हार जाती हैं. सूर्य को कृतज्ञता ज्ञापित करते,अपने परिवार की सुख समृद्धि की कामना करते जनसैलाब को देख कर मुझे भी पिछले वर्ष इलाहाबाद में बहती संगम की धारा और उसमें झिलमिलाती डूबते सूर्य की किरणों के मद्दम होते हुए वो दृश्य याद आ गए जिन्हें मैंने जी भर जिया था. इस समय भी मेरे पास न बहंगी है,न आसपास नदी,न पोखर, न छठ का परिवेश लेकिन मन है आराधना का. जिसे स्वीकारें सूर्य देवता. आप सबको छठ की शुभकामनाएं.आपके परिवार पर छठी मैया का आशीर्वाद बना रहे. मेरा यदि