गुनगुनाती हुई महफ़िलें गुनगुनाता हुआ कालीन हर रस रंग से सिक्त कविताओं की बैठकों का श्रोता कालीन मेरे गाँव से चल कर आई धूल से किसकिसाता कालीन शिकवों,ठहाकों,मज़ाकों,पुरानी मस्तियों की याद में रात भर जागी दोस्ती पर मुस्कुराता हुआ कालीन घर भर के मेहमानों को नींद की गोद देता कालीन बहुत से हल्दिया सगुनों से छिटकी हल्दी से पीला हुआ कालीन सब कहते हैं पुराना हो गया है सो लपेट कर रख दिया है एक कोने में और उसमें लिपट गयीं हैं महफिलें,चर्चाएँ,बैठकें,गाँव की मिट्टी से सने पैर ,दोस्तों का जमघट ,मेहमानों की फ़ुर्सत,हल्दिया रस्में और भी बहुत कुछ और उनमें शामिल मेरे अपनों के कदम कुछ स्मृतियाँ ऐसी होती हैं जो हमारे वजूद में पूरी तरह जज्ब सी हो जाती हैं और कुछ ऐसी भी जिन्हें कुछ प्रतीक दोहरा देते हैं और फिर एक रील सी चलने लगती है एक के बाद एक उन स्मृतियों की , जिसमें वो प्रतीक तो शामिल है ही साथ ही उससे जुड़ी बातें यादें.................