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उनके वादे उनको याद कराये जाएँ

कल शाम नोयडा अट्टा मार्केट में डॉमिनोज़ में पिज़्ज़ा खाते वक़्त मेरी निगाह सामने बैठे कचरा  बीनने वाले बच्चों के झुण्ड पर पड़ी !सामने बने फुटपाथ पर कुछ देर के लिए सब दोस्त इकठ्ठा हुए थे शायद थोड़ी देर सुस्ताने के लिए ! मम्मा ..क्या देख रही हो ? दिवम ने पूछा ! मैं कहा.. कुछ नहीं बस सोच रही हूँ कि हम सब इक्कुअल क्यों नहीं हैं ? दिवम ने मेरी निगाह पहचान कर पीछे की तरफ़ मुड़ कर देखा और कहा मम्मी मैं जानता हूँ आप ऐसा क्यों सोच रही हो !लेकिन सोचने से कुछ नहीं होता हम कभी इक्कुअल नहीं हो सकते ! मैं जानती हूँ कि सब बराबर नहीं हो सकते लेकिन कम से कम हर किसी को एक घर, कपड़े, खाना तो नसीब हो सके.. मैंने कहा! मम्मा जब हमारा सिस्टम ऐसा होने देना चाहेगा तब न ! इस उम्र के बच्चे बहुत एन्थ्यूज़ियास्टिक होते हैं और वो है भी फिर भी उससे ऐसा होपलेस जवाब सुनकर मेरी चिंता बढ़ी हालाँकि उसने जो कहा सच कहा !अब मेरी ड्यूटी थी फ़िर से दोहराना कि बदलाव लाने के लिए हमारी भी उतनी ज़िम्मेदारी है जितनी सिस्टम की !  इस बीच कृशांग पिज़्ज़ा और गार्लिक ब्रेड को जल्द से जल्द ख़त्म करने में जुटे हुए थे !उसके बेफ़िक्र  चेहरे ने मुझे एक मुस्

चाँद चलता रहा रवानी में

सुबह के लगभग सात बज रहे थे,और दिनों की बनिस्बत उस दिन मैंने ज़रा जल्दी सुबह का उजाला देखा था ,ऐसा होना ज़रूरी भी था,क्यों कि कुछ दिनों के लिए लिए हम झीलों के शहर उदयपुर में थे ,और सोते रहना बहुत कुछ खो देने जैसा था, मुझे सुबह-सुबह झील से मिलना था और मैं मिली भी,आसमां बादलों की मेहमान नवाज़ी कर रहा था,ख़ामोश झील बूँदों के बरसने से बोल दिया करती है लेकिन उस दिन बादल बिन बरसे वापस लौट गये थे !लेकिन झील ने कुछ कहा जिसे मैंने मन में कुछ इस तरह दर्ज किया- 'झील में भी लहर दिखाई दी  अश्क शायद गिरा था पानी में' और वो आधा अधूरा सा कुछ  इक ग़ज़ल में पिछले दिनों यूँ ढला _____________________________________________________  सारी दुनिया की निगह्बानी में चाँद चलता रहा रवानी में झील में भी लहर दिखाई दी अश्क शायद गिरा है पानी में मुश्किलें हैं मगर करूँ क्या मैं चैन मिलता है सच बयानी में तुमसे जो बात कह नहीं पाई उसको लिक्खा है इक कहानी में फ़िक्र भी छोड़ दे तू अब मेरी ज़िन्दगी है तेरी निशानी में