असमंजस
क्या लिखूँ ?
फिर कुछ दिन से बड़ा शोर हो
रहा है ‘सोशल मीडिया पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता कितनी उचित कितनी अनुचित’ आज के
सुपर नेट वर्किंग समय में इस विषय पर कितना भी लिखे ,बोलें ,टॉक शो करवायें इसका
हल और एक गाइड लाइन क्रीएट करना असंभव है ,मैंने यही सोच कर इस मुद्दे पर किसी भी
पोस्ट पर अपनी राय ना देना ही सही समझा लेकिन यहाँ फिर ‘चीन’ नामक देश मेरे ज़ेहन में कुलबुलाने लगा
,चीन वो देश है जहाँ सोशल नेटवर्किंग साईट जैसे- फेसबुक प्रतिबंधित है लेकिन पिछले
३ दशक से जिस तरह से चीन ने अन्तराष्ट्रीय बाज़ार पर कब्ज़ा किया हुआ है उससे कौन कह
सकता है कि ये देश सोशल साइट्स पर नेट वर्किंग को महत्वहीन मानता है जहाँ हम आज
वर्तमान में सोशल साइट्स पर खुद का उपलब्ध होना ज़रूरी मानते हैं .........
कल ही चीनी इंटरनेट
कम्पनी ‘बाईदू’ ने मंगलवार को अपने होम पेज पर एक छोटे से द्वीप पर चीनी झंडा
फहराते हुए दिखाया है ...पूरा किस्सा किसी द्वीप पर अधिकार को लेकर है शायद ,पूरी
तरह पढ़ नहीं पाई कि मामला क्या है लेकिन इससे ये याद आया कि अभी कुछ दिनों पहले
भारत में शायद सियाचिन के आसपास भी
चीनी झंडा फहराता हुआ दिखाई दिया था..........
वास्तव में ऐसा आत्मविश्वास कुछ वक़्त की देन नहीं है .................मुझ जैसे आम भारतीय पर इन दिनों चीन का प्रभाव इतना हावी हो रहा है तो जो सीधे तौर पर इनकी शक्ति,सम्पन्नता से घवराये हुए हैं उनके बारे में सोचिये ज़रा ........
अभी हाल ही में कई मौकों पर ब्लॉग और फेसबुक कुछ
पोस्ट करते हुए हाथ रुक गए, हुआ यूँ कि पिछले कुछ दिनों पहले अपने देश में ‘खेल
दिवस’ मनाया गया तो सोचा कि कुछ इससे रिलेटेड पोस्ट किया जाये लेकिन पोस्ट करती
इससे पहले ही ‘हिन्दुस्तान’ अखवार में एक आर्टिकल पढ़ने को मिला जिसका टाइटल था
‘चीन कैसे बना खेलों में सुपर पॉवर’ ...चीन में आज कल एक स्लोगन 'च्च्वी क्व्थी च’
बड़ा प्रसिद्ध है ,इसका मतलब है –खेलों में पूरी शक्ति लगा देना|सरकार और खेल विभाग
पूरी तरह इस पर अमल करते हैं विश्व स्तरीय एथलीट बनाने की प्रक्रिया बचपन से ही शुरू
हो जाती है किंडरगार्टन से ही प्रतिभावान बच्चों को चुन लिया जाता है और उसका
रिज़ल्ट तो हम देख ही रहे हैं कि लन्दन
ओलंपिक में ३८ पदक जीत कर वो अमेरिका से पीछे था ऐसा ही बहुत कुछ जान लेने के
बाद तो एक वारगी लगा कि अपने मित्रों को
खेल दिवस की शुभकामना देकर क्यों औपचारिकता निभाई जाये जब कि हम जानते हैं हमारे
यहाँ खेल और खिलाड़ी मुश्किलों से सरवाइव कर पा रहे हैं ........
अब मैं ‘हिंदी दिवस’ पर कुछ लिखते लिखते रुक रही थी
यहाँ भी चीन ने एक सॉलिड रीज़न दिया कि क्यों हम नहीं हम अपनी मात्रभाषा में अपने देश का प्रतिनिधित्व नहीं कर
सकते जबकि चीनी अपनी मात्रभाषा में ही संपर्क स्थापित कर आज आर्थिक महाशक्ति के
रूप में तेज़ी से बढ़ रहा है और हमारी हिंदी अभी भी राज भाषा का स्थान पाने को
संघर्षशील है ........
अब मैंने भारत में ‘वालमार्ट’
के विरोध में कुछ लिखने के लिए उँगलियाँ की बोर्ड पर चलाई हैं लेकिन यहाँ भी सामना चीन से
है हमारे रिटेलर्स यहाँ चीन से मात खायेंगे क्यों कि वाल मार्ट का ९२ प्रतिशत सामान मेड इन चाइना होगा ,जबकि
हमारा बाज़ार पहले से ही चीनी चीज़ों से पटा पड़ा है ऐसे में अपने लोगों की रोज़ी रोटी चीन कर हमारी सरकार क्यों विदेशी कंपनियों के लिए खुदरा बाज़ार खोल कर उनका स्वागत
कर रही है ?
वास्तव में ऐसा आत्मविश्वास कुछ वक़्त की देन नहीं है .................मुझ जैसे आम भारतीय पर इन दिनों चीन का प्रभाव इतना हावी हो रहा है तो जो सीधे तौर पर इनकी शक्ति,सम्पन्नता से घवराये हुए हैं उनके बारे में सोचिये ज़रा ........
कल 21/09/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
अच्छा लगा आपका लेख ...आभार !
जवाब देंहटाएंअच्छा आलेख चीन की बदती शक्ति के पीछे उनका राष्ट्रीय अनुशाशन की भावना है ....
जवाब देंहटाएंसब अपने स्वार्थ में लिप्त हैं .... विचारणीय लेख
जवाब देंहटाएंचीन की निरंकुश सत्ता और वहाँ के लोगों की मेहनत व अनुशासन ही उनको आगे ले जा रहा है. पर इस व्यवस्था में अन्य उन्नत देशों सा स्थायित्व नहीं है। चीन रूस फ्रांस जर्मनी अपनी भाषाओं पर कितना आदर रखते हैं ये सर्वविदित है पर अब सॉफ्टवेयर और अन्य बाजारों में अपनी पकड़ बनाने के लिए चीनी भी अंग्रेजी सीख रहे हैं।
जवाब देंहटाएंबिल्कुल मनीष जी ........
जवाब देंहटाएंhar baar lagta hai, likhna jaruri hai, par kahan chal pata kalam.....
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