कब तक ?
‘जब वी मेट’ फिल्म के
सीन की तरह क्या हम कागज़ पर ख़ूब भद्दी भद्दी गालियाँ लिखें और उस काग़ज़ को फ्लश्ड आउट करके अपनी नाराज़गी को कम कर लें?या आश्चर्य करें इन कमज़र्फों
पर जिनकी ज़बान को ताक़त देने वाली मांसपेशियाँ हमारे खून से बनी हैं !
बाहर अंदर ख़ूब शोर
है एक पार्टी के सामान्य से नेता द्वारा दलितों की हितैषी कही जाने वाली एक पार्टी की महिला राष्ट्रीय
अध्यक्ष के बारे में बेहद ख़राब टिप्पणी की वजह से !
आज दिन सूरज की गर्मी
से कम इस घटनाक्रम के ख़िलाफ़ प्रदर्शन से ज़्यादा तपा !
गालियों का विरोध
गालियों से !
तेरी माँ होती तो,तेरी बहन होती तो!
राजनीति की चालें हम समझते हैं लेकिन
निशाना यानि हम यानि स्त्रियाँ !
क्यों भई?
राजनीति की चालें हम समझते हैं लेकिन
निशाना यानि हम यानि स्त्रियाँ !
क्यों भई?
निशाना यानि हम यानि स्त्रियाँ!
हम पर तीर चलाने
वाला तीरंदाज़ कभी मायूस नहीं होगा क्यों हम वो शिकार हैं जो उसके दायरे में हमेशा
से रहे हैं !चरित्रहीनता का सर्टिफिकेट तो स्त्रियों को सेकेंड्स में दे दिया जाता
है!
अगर आपके वुजूद में राष्ट्रपति,मुख्यमंत्री,एस्ट्रोनोट,रेसलर,पायलट
आदि जैसी उपलब्धियाँ शामिल होंगी तब कहा जायेगा कि 'ओहो....एक औरत होकर’ !
लेकिन अगर आप पितृसत्ता
की अनुगामी हैं और उससे अलग कुछ भी सोचती या करती ,कहती हैं तो भी कहा जायेगा कि ‘ओहो
एक औरत होकर’ !
क्यों हमेशा स्त्रियों
का ही चीर हरण किया जाता है ?
क्यों स्त्रियों को ही परीक्षा देनी होती है ?
क्यों स्त्रियों को
ही कटघरे में खड़ा किया जाता है ?
बहुत हुए ये घिसे
पिटे सवाल जिनके जवाब जानते बूझते ये सवाल हम बार-बार पूछें तो हमसे बड़ा मजबूर कौन
होगा लेकिन हम हैं ही ऐसे मजबूर !
ये है कुछ स्त्रियों
के जीवन का ढंग -
हम पर अधिकार हैं न
उपयोग किये जाने के लिए !
हम पर स्वतंत्रता है
न स्वीकार किये जाने के लिए !
हम पर शक्ति है न
पहचान पाने के लिए !
ये है कुछ स्त्रियों
के जीवन का ढंग-
हम पर अधिकार हैं हम
प्रयोग करते हैं !
हम स्वतंत्र हैं तो
स्वतंत्र जीते हैं !
हम पर शक्ति है हम
जानते हैं !
यानि कुछ के लिए अपना
होना बेमायने है कुछ के लिए उनका अपना होने के मायने हैं !
लेकिन दोनों ही तरह
के जीवन जीने वाली स्त्रियों पर आक्षेप पर कोई
भेदभाव नहीं !
हमारे घूँघट हटने से
घर की लाज चली जाती है ,हमारी स्कर्ट की ऊँचाई पुरुषों को प्रोवोक करती है ,हमारा
तेज़ आवाज़ में बोलना भी हमें हमारी औकात से
बाहर होने का सायरन है ,हममें और सजावटी वस्तु में कोई फर्क नहीं,आज भी हम दाँव पर
लगा दिए जाते हैं !
अब मत बतलाइये कि हम
क्या हैं अब बस करके दिखलाइये कि हम क्या कर सकते हैं !
अब वक़्त अपने अपराधी
को अपराधी घोषित करवाए जाने का है, विरोध का है तब तक जब तक विरोध अपने विरोध का
विरोध न करने लगे और हँसने का इन घटिया स्टेटमेंट्स पर उस हद तक जब तक बोलने वाला इतना
शर्मिंदा न हो जाये कि उस पर ‘चुल्लू भर पानी में डूब मरो’ वाला मुहावरा फिट न हो
जाए और उस एटीट्यूड को साधने का कि जहाँ बोल सको ‘जस्ट गो टू हेल,भाड़ में जाओ तुम
और तुम्हारी बेहूदा सोच,हमें कोई फ़िक्र नहीं!
लेकिन ये पैराग्राफ सिर्फ़
खानापूर्ति न हो क्यों कि बात ख़त्म करनी है!बल्कि वाक़ई में ऐसा हो !
ऐसी आस विश्वास के
साथ रखनी है!
मुझे और आपको !
सोनरूपा
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