मुस्कुरा लें आज या ख़ुद को रुला लें

रोक रक्खी भावनाओं को बहा लें मुस्कुरा लें

आज या ख़ुद को रुला लें 

चित्र अनदेखा सा इक उभरा हुआ है

रौशनी का हर क़दम ठहरा हुआ है

सब हुलासें सब मिठासें गुम गयी हैं

मन का चेहरा आजकल उतरा हुआ है 

दूधिया एकांत का उबटन लगा लें

मुस्कुरा लें आज या ख़ुद को रुला लें 

ख़ुद को ख़ुद की ग़लतियों पर डाँट लें

हम बस हरापन और सूखा छाँट लें हम 

अपनी बाँहों में सिमट आने दें ख़ुद को एक दूजे को बराबर बाँट लें हम 

अनछुए सपनों की फिर गृहस्थी बसा लें 

मुस्कुरा लें आज या ख़ुद को रुला लें 

डर बहुत पक्का है घर कच्चा अगर है

नींद की फसलों पे आँधी का कहर है

पार पाना पार जाने से है मुमकिन

अन्यथा मुश्किल भरा सारा सफ़र है 

पर्वती बेचैनियों को हम ढहा लें

मुस्कुरा लें आज या ख़ुद को रुला लें

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