तुम मिले तो ज़िन्दगी सन्दल हुई

तुम मिले तो ज़िन्दगी सन्दल हुई

एक ठहरी झील में हलचल हुई

इक नदी पर बाँध-सा बाँधा था मन

क्यों मगर ढहने लगा मेरा जतन

खोजने पर ये मिला उत्तर मुझे

था ये जीवन में तुम्हारा आगमन

ख़त्म अब जाकर मेरी अटकल हुई

हर नया दिन रेशमी अहसास है

अब न कोई भी अधूरी आस है

पल हुए जीवन के सारे सरगमी

सूनेपन ने ले लिया संन्यास है

खुरदुरी थी ज़िन्दगी समतल हुई

तुम मिले तो ज़िन्दगी सन्दल हुई

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

सोत नदी 🌼

गोपालदास नीरज की जन्मजयंती पर

भय अजय होने न दूँगी