सूना सूना है सावन तुम्हारे बिना
ये अंश हैं मेरे पिता डॉ.उर्मिलेश के १९९४ में प्रकाशित पहले संग्रह ‘धुँआ चीरते हुए’में से जिसमें वे अपनी सृजन यात्रा के कुछ पल याद करते हुए लिखते हैं
“मैंने पहली ग़ज़लअगस्त १९७१ में हिंदी के मौलिक ग़ज़लकार स्व.बलवीर सिंह रंग की ग़ज़ल ‘सूनी सूनी है होली तुम्हारे बिना /जिंदगी है ठिठोली तुम्हारे बिना ‘ से प्रभावित होकर लिखी थी (तब ग़ज़ल कहता था लिखता नहीं था ) मेरी पहली ग़ज़ल थी ‘सूना सूना है सावन तुम्हारे बिना,अब ना लगता कहीं मन तुम्हारे बिना /मंदिरों में गया तो यही स्वर सुना, व्यर्थ जायेगा पूजन तुम्हारे बिना |उस ग़ज़ल में नौ शेर थे सबमे हिंदी के तत्सम शब्दों का प्रयोग था | मेरी ग़ज़लों अगस्त ७१ से सन ७५ तक की ग़ज़लों में हिंदी के तत्सम शब्दों का आग्रह कुछ अधिक ही रहा |बाद की ग़ज़ल परिवेशगत यथार्थ को उद्घाटित करने वाली थीं उनकी भाषा ,बोलचाल की भाषा के बहुत नज़दीक होती गयी यह सब सायास नहीं हुआ | अत्यंत सहज और अनारोपित ढंग से यह बदलाब आता गया | सोच और भाषा दोनों ही स्तर मैंने बदलाब को आने दिया ,इसे बाधित नहीं होने दिया” “............................................................................
उसके बाद उनके ग़ज़ल,गीत-नवगीत,दोहा और भी अन्य विधाओं करीब २५ संग्रह प्रकाशित हुए हैं जो बहुत प्रसिद्ध हुए...........................................................................
एक १८ ,१९ साल के नवयुवक की ये पहली कोशिश जो बहुत सहज और भोली लगी मुझे,साथ एक पिता की पहली रचना होने के नाते और भी प्यारी
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कुछ समय पहले पापा को याद करते हुए इसको संगीत में पिरोया था मैंने ...................................................................
आज पहली बार आप सब के साथ भी शेयर कर रही हूँ
आपको सुनना एक अलग ही एहसास से गुजरना है .
जवाब देंहटाएंसादर
डॉ. उर्मिलेश जी को कई बार कवी सम्मेलनों में सुनने का मौका मिला..उनकी लेखनी में जो विविधता थी वो कम ही देखने को मिलती है..बहुत कुछ सीखा है उन्हें सुन और पढ़ कर..सार्थक प्रयास के लिए साधुवाद..
जवाब देंहटाएंaapko suna dil ko chhu gaya. badhai
जवाब देंहटाएंखरगोश का संगीत राग रागेश्री पर
जवाब देंहटाएंआधारित है जो कि खमाज थाट का सांध्यकालीन राग है,
स्वरों में कोमल निशाद और बाकी स्वर शुद्ध लगते हैं, पंचम इसमें वर्जित है,
पर हमने इसमें अंत में पंचम का प्रयोग भी किया
है, जिससे इसमें राग बागेश्री
भी झलकता है...
हमारी फिल्म का संगीत वेद नायेर ने दिया
है... वेद जी को अपने संगीत कि प्रेरणा जंगल में चिड़ियों कि चहचाहट से मिलती है.
..
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वाह! गजल के शब्द ,भाव और आपका गायन साथ में
जवाब देंहटाएंकर्णप्रिय संगीत हृदय को मधुर मधुर झंकृत और आंदोलित
कर रहे हैं.
शेयर करने के लिए हार्दिक आभार,सोनरूपा जी.
आदरणीय पिता श्री को सादर नमन.
आपकी गजल 'हम पर तुम्हारी चाहत का इल्जाम ही तो है'
जवाब देंहटाएंभी सुनी. आपकी दिलकश आवाज दिल को छूती है.
असीम कृपा है प्रभु की कि आपको 'सुग्रीव'होने का सौभाग्य
प्राप्त हुआ.
'सुग्रीव' के लिए मेरी पोस्ट 'हनुमान लीला भाग १
व २' जरूर देखिएगा.
जब भी तुम्हे पढता हूँ, डॉ उर्मिलेश की मधुर आवाज़ कानों में सुनाई देती है ...
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