सादगी की उसूल की बातें
मेरे पिता डॉ .उर्मिलेश की ग़ज़ल का मतला है .... सादगी की, उसूल की बातें आजकल हैं फ़िज़ूल की बातें और शायद इसी बात को अनदेखा कर दिया कुछेक उसूलों पर चलने वाले,जिन्हें हम ऊँगलियों पर गिन सकते हैं उनमे से एक आई ए एस 'दुर्गा शक्ति नागपाल' ने,अब वक़्त ही ऐसा हैं कि उसूलों का कोई वजूद ही नहीं।किस्से कहानियाँ में ही सुनिए अब ऐसे चारित्रिक गुण।बावजूद इसके,क्यों कि हैं तो इंसान ही, इसीलिए नकारात्मकता के साथ-साथ आज के समय में भी थोड़ा बहुत सकारात्मक सोचने की भी हिम्मत कर लेते हैं…क्यों कि वक़्त की ज़रुरत भी है हमारी हिम्मत ,एक बात और सोते रहने वाले एक तरह मृत कहलाये जाते हैं और जीते जी खुद को मृत कहलवाना किसे पसंद होगा ? इसीलिए मैंने जिनके शेर से बात शुरू की है तो उन्हीं के चंद अशआर से दुर्गा के साथ खड़े हुए हाथों में अपना हाथ भी शामिल करती हूँ ……। वजूद अपना ज़रा इस्तेमाल करता चल जवाब खुद ही मिलेंगे सवाल करता चल फिर उसके बाद ज़माने के सह सके पत्थर तू काम ऐसा कोई बेमिसाल करता चल जो अपनी बीन पे तुझको नचा रहे हैं यहाँ तू उन सपेरों का जीना मुहाल करता चल ये सारी