सोत नदी 🌼 सोत नदी में फिर कलकल हो ऐसा प्रयत्न किया जाए अब ज़ख्म मिले हैं इसको जितने उनको पुन: सिया जाए अब सोत नदी के तीरे तीरे हरियाली थी,गुंजन था लहरें आँचल,बदरा पायल चंदा जैसे कंगन था क्षण क्षण क्षीण हुई काया को जीवन दान दिया जाए अब सोख लिया है इसके जल को शातिर सी शैतानी ने दोहन ने,भौतिकता ने स्वारथ की मानामानी ने क्यों अस्तित्व मिटा है इसका उत्तर शीघ्र लिया जाए अब फिर से चलें कश्तियां इसमें मेले जुड़ें,उमंगें हों शुद्ध नीर से करें आचमन ऐसी धवल तरंगे हों अपने इस स्वर्णिम अतीत को मिलकर पुन: जिया जाये अब ~सोनरूपा {मुरादाबाद की तहसील अमरोहा से उत्स है सोत नदी का।वहाँ से चल कर यह मुरादाबाद जनपद के पूर्वी और दक्षिणी भाग में बसे गाँवों को छूती हुई बदायूँ जनपद की सीमा में प्रवेश करती हुई गंगा में विलीन हो जाती है। सोत नदी स्वत: स्रोतित नदी रही है।एक समय था जब इसमें लबालब जल भरा रहता था।पहचान थी ये हमारे ज़िले की। मैंने स्वयं इसका तरंगित स्वरूप देखा है। हमारे पैतृक गाँव भतरी गोवर्धन से ये गुज़रती थी।मेरे पिता इसी को पार करके बाहर कस्बे में शिक्षा ग्रहण करने जाते थे।उन्होंने इसमें अठखेलियाँ की
वाह वाह !!! बहुत शानदार सुंदर गजल,,,बधाई,,,,
जवाब देंहटाएंrecent post: कैसा,यह गणतंत्र हमारा,
वाह ...क्या बात है ...बहुत सुन्दर और कामयाब ग़ज़ल ...हर शेर काबिले दाद हुआ है ...दाद कबूल करें।
जवाब देंहटाएंसभी शेर लाजवाब
जवाब देंहटाएंसादर
क्या खूब गजल कही आपने सोन रूपा जी बहुत खूबसूरत
जवाब देंहटाएंbehad khoobsurat ghazal .. bahut badhai Sonroopa ..
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंना जाने अब तक कहाँ छुपाके राखी थी यह रचना ?
बेहतरीन ग़ज़ल.....
जवाब देंहटाएंअनु