उनके वादे उनको याद कराये जाएँ
कल शाम नोयडा अट्टा मार्केट में डॉमिनोज़ में पिज़्ज़ा खाते वक़्त मेरी निगाह सामने बैठे कचरा बीनने वाले बच्चों के झुण्ड पर पड़ी !सामने बने फुटपाथ पर कुछ देर के लिए सब दोस्त इकठ्ठा हुए थे शायद थोड़ी देर सुस्ताने के लिए ! मम्मा ..क्या देख रही हो ? दिवम ने पूछा ! मैं कहा.. कुछ नहीं बस सोच रही हूँ कि हम सब इक्कुअल क्यों नहीं हैं ? दिवम ने मेरी निगाह पहचान कर पीछे की तरफ़ मुड़ कर देखा और कहा मम्मी मैं जानता हूँ आप ऐसा क्यों सोच रही हो !लेकिन सोचने से कुछ नहीं होता हम कभी इक्कुअल नहीं हो सकते ! मैं जानती हूँ कि सब बराबर नहीं हो सकते लेकिन कम से कम हर किसी को एक घर, कपड़े, खाना तो नसीब हो सके.. मैंने कहा! मम्मा जब हमारा सिस्टम ऐसा होने देना चाहेगा तब न ! इस उम्र के बच्चे बहुत एन्थ्यूज़ियास्टिक होते हैं और वो है भी फिर भी उससे ऐसा होपलेस जवाब सुनकर मेरी चिंता बढ़ी हालाँकि उसने जो कहा सच कहा !अब मेरी ड्यूटी थी फ़िर से दोहराना कि बदलाव लाने के लिए हमारी भी उतनी ज़िम्मेदारी है जितनी सिस्टम की ! इस बीच कृशांग पिज़्ज़ा और गार्लिक ब्रेड को जल्द से जल्द ख़त्म करने में जुटे हुए थे !उसके बेफ़िक्र चेहरे ने मुझे एक मुस्कराहट दे दी ! कुछ इस तरह के वाक़ये,ज़िक्र हमारी ज़िन्दगी का हिस्सा बन चुके हैं और यही हमसे कभी-कभी कुछ लिखवा भी लेते हैं !आज से तीन चार साल पहले एक ग़ज़ल पन्ने पर उतरी तब शायद इसी तरह का कोई वाक़या हुआ होगा और मैंने अपने हाथों से इक आस का पंछी गगन में उड़ने के लिए भेज दिया होगा जिस तरह आज मैंने दिवम से कहा... 'बी एन्थ्यूज़ियास्टिक' हमसे,हमारे हौसलों ,हमारे कामों से ये दुनिया और ख़ूबसूरत बनेगी ! तो फिर आज वही ग़ज़ल आप सब के साथ बांटने का मन हुआ !
उनके वादे उनको याद कराये जाएँ
उनके ख़त अब उनसे ही पढ़वाये जाएँ
वक़्त की धारा चाहे जितनी तेज़ बहे ज़िद है
अपनी उनका साथ निभाए जाएँ
जिन हाथों में ख़ुदगर्ज़ी की चाभी है
उन हाथों से ताले क्यों खुलवाये जाएँ
जिसमें एहसासात की गहरी रंगत हो
ऐसे रंग से घर आँगन रंगवाये जाएँ
कालीनों पर चलने के आदी हैं
जो इक दिन वो भी काँटों पर चलवाये जाएँ
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