कुछ संस्मरण

ग़ज़ल यही तो है ! आदरणीय हस्ती मल ‘हस्ती’ जी से मेरा पहला परिचय ‘युगीन काव्या’ के माध्यम से हुआ वो भी बड़े अनोखे ढंग से !हुआ यूँ कि मेरे पिता डॉ उर्मिलेश हिन्दी ग़ज़ल के अति महत्त्वपूर्ण हस्ताक्षर रहे हैं ! उनकी गज़लें देश की विभिन्न पत्रिकाओं मेँ प्रकाशित होती रहती थीं ! अक्सर वे पत्र लिख लिखाकर जब निवृत हो जाते तो मुझे उन लिफ़ाफ़ों को गोंद से चिपका कर बंद करने का काम दे देते थे उन्हीं लिफ़ाफ़ों में से एक लिफ़ाफ़े पर ये एक पता लिखा होता-   सेवार्थ, श्री हस्ती मल ‘हस्ती’  संपादक  युगीन काव्या  फिर बाद में कहीं अन्तर्मन में रह गया ये नाम एक दिन जगजीत सिंह जी की गज़लों की अल्बम ‘फेस टू फेस’ पर नज़र आया और फिर जैसे जैसे गज़लों से मुहब्बत बढ़ती गयी तो पत्रिकाएँ पढ़ने का भी शौक बढ़ने लगा और फिर वहाँ से  हस्ती जी की गज़लों के माध्यम से उन्हें जानना पहचानना प्रारम्भ हुआ !

पहचानना इसीलिए कह रही हूँ क्यों कि मुझे हमेशा उनको पढ़कर लगता था कि हो न हो हस्ती जी भी अपनी गज़लों की तरह सरल,सहज और सजग व्यक्तित्व होंगे ! क्यों कि हमेशा लेखनी और करनी एक ही हो ऐसा ज़रूरी नहीं !रचनाकार का व्यक्तित्व अगर उसकी रचनाओं मे प्रतिबिम्बित हो तो ये उसकी बहुत बड़ी विशेषता है क्यों कि तभी वह रचनाओं से न्याय कर पाता है और अपने पाठकों से भी और मेरे इस दृष्टिकोण पर एक बार मुहर तब लगी जब मेरे ग़ज़ल संग्रह ‘लिखना ज़रूरी है’ पर उन्होने इतनी हौसला बढ़ाने वाली टिप्पणी दी कि मैं ख़ुश तो हुई ही लेकिन अचंभित भी कि ग़ज़ल के इतने बड़े नाम और कितने विनम्र !दरअसल होता तो यही कि वृक्ष जितना फलदार होता है उतना ही झुका हुआ होता है लेकिन ऐसा इन्सानों में थोड़ा कम नज़र आता है !

आज जब उनकी गज़लों के विस्तार से गुज़र रही हूँ तो लगता है कि उन्होने ग़ज़ल को जैसे अपने भीतर उतार लिया है !लगता है जैसा-जैसा उनका मन कहता गया ठीक वैसा-वैसा उनकी कलम लिखती गयी !कहीं कोई जल्दबाज़ी नहीं ,कोई विचलन नहीं ,कुछ जबरन कह देने की ज़िद नहीं !  उनकी गजलें हिन्दी ग़ज़ल और उर्दू ग़ज़ल की दूरियों को बढ़ाने के लिए बना दिये गए दोनों किनारों से बीच में बहने वाली नदी की तरह है !जिसमें हिंदुस्तानी भाषा का जल प्रवाहित हो रहा है! हस्ती जी के पास उनकी अपनी हस्ती है !किसी भी रचयिता की सबसे बड़ी ख़ूबी यही है कि वो अपनी शिनाख़्त पा जाए !

आज के समय की क्रूरता को जब हिन्दी ग़ज़ल में उतनी ही तल्खी से लिखा जा रहा है कि मन पढ़ कर बेचैन हो जाए और उर्दू ग़ज़लों में अभी भी समय की नब्ज़ को न महसूसते हुए स्वकेन्द्रीयता की नुमाइश नज़र आती हो तो ऐसे में हस्ती जी का नाम उन ग़ज़लकारों में शामिल है  बेहद संतुलन के साथ हिंदुस्तानी लहजे में उन सारी ख़ासियतों को अपनी गज़लों मे पिरो रहे हैं जिनके होने से ग़ज़ल समृद्ध होती है ! ग़ज़ल का अपना लहजा होता है ,अपनी तकनीक होती है उसे अगर आप छोड़ेंगे तो वो ग़ज़ल आत्माविहीन हो जाएगी !

हस्ती जी की गज़लों में ग़ज़ल की आत्मा सुरक्षित है!  काँच के टुकड़ों को महताब बताने वाले  मुझको आते नहीं आदाब जमाने वाले  सच के हक़ में खड़ा हुआ जाए  जुर्म भी है तो ये किया जाए   हस्ती जी ने कितनी आसानी से  जता दिया कि किस तरह सच के साथ रहना आजकल ज़माने के चलन के विरोध में रहना हो गया है !  जब वो कहते हैं- हम लड़ रहे हैं रात से लेकिन उजालों पर  होगा तुम्हारा नाम ये मालूम है मुझे या  मैं पसीना बहाने में ही रहा  सबने अपनी ज़मीन तर कर ली, तब वो बेहद सलीके से स्वार्थसिद्धि की पराकाष्ठा को इंगित करते हैं समकालीन विसंगतियों को अभिव्यक्तियों का जामा हस्ती जी बख़ूबी पहनाते हैं –  किस ज़माने की बात करते हो  शर्म और वो भी बेईमानी में   मंदिर पर भी पहरा है  ईश्वर किससे डरता है   जब तक हरा भरा हूँ ,उसी रोज़ तक हैं बस  सारे दुआ सलाम ये मालूम है मुझे   उनके शेर आमफ़हम और इतने सीधे सच्चे हैं कि पाठक उनमें उलझता नहीं बल्कि अपने भीतर की कई गाँठों को खुलता हुआ महसूस करता है !

कुछ शेर देखिये- 

सच कहूँ तो हज़ार तकलीफ़ें

झूठ बोलूँ तो आदमी ही क्या

एक सच्ची पुकार काफ़ी है 

हर घड़ी क्या ख़ुदा ख़ुदा करना

चाहे जिससे भी वास्ता रखना

चल सको इतना रास्ता रखना

जिंदगी के अनगिनत पहलुओं पर उन्होने शेर कहे हैं और इस ख़ूबी से कहे हैं कि उनके शेर कोटेबल बन गए हैं और सच बात तो यही है शेर वही ज़िंदा रहता है जिसे दिल महसूस करता है !हस्ती जी के अशआर में कहीं भी भाषायी विद्वता का अतिरेक नहीं है इसीलिए वो लोगों की ज़ुबान पर आसानी से चढ़ जाते हैं ! हस्ती जी का ये शेर उन की रचनाधर्मिता को ही परिभाषित करता है –  

शायरी है सरमाया ख़ुशनसीब लोगों का

बाँस की हर इक टहनी बांसुरी नहीं होती

हस्ती जी उन्हीं ख़ुशनसीब लोगों में शुमार हैं जिन पर शायरी अपनी पूरी सज धज के साथ नुमाया हुई है !न केवल अपनी ग़ज़लों में समकालीन जीवन के बोध के कारण वरन अपने उदात्त एवं व्यापक जीवनमूल्यों की स्थापना से ग़ज़लों की संपदा को और समृद्ध करने मे हस्ती जी के योगदान को हमेशा ध्यान में रखा जाएगा ! 

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