कक्षा पाँच में पढ़ने वाली तब मैं थी इक गुड़िया

अक्सर ही मैं दोहराती हूँ एक ज़रूरी बात

बचपन में पापा ने बोये जो मुझमें जज़्बात

कक्षा पाँच में पढ़ने वाली तब मैं थी इक गुड़िया

पापा मुझको कहते थे जादू वाली इक पुड़िया

 एक बार ये गुड़िया बोली पापा से ये जाकर

पापा सुन्दर सा इक चित्र मुझे देदो बनवाकर!

मुझको अपने विद्यालय में प्रथम जगह है पाना

मैं कितनी हुश्यार हूँ बच्ची सबको है बतलाना

पापा ने कुछ रंग और काग़ज़ मुझसे मंगवाए

रबर,पेन्सिल,पैमाना भी संग उसके रखवाये

थोड़ी देर में पापा ने इक सादा चित्र बनाया

मैंने जब देखा तो मुझको तनिक नहीं वो भाया

जलती हुई मोमबत्ती जो संख्या में थीं तीन

जिन्हें देख ये मीठी गुड़िया हो बैठी  नमकीन 

पहली मोम बत्ती पर लिक्खा 'सबसे पहले देश'

दूजी पर 'माँ' तीजी पर 'बाक़ी सब'का  संदेश

पापा ने कितनी सुन्दर सी बात मुझे सिखलाई

मैंने विद्यालय में सबसे ख़ूब प्रशंसा पाई

यही ज़रूरी बात आज मैं सबको बतलाती हूँ

सबसे पहले देश प्रेम है सबको जतलाती हूँ

फिर मैंने अपनी माँ को सबसे ऊपर जाना है

ख़ुद को यदि पँछी माना तो उसको पर माना है

उसके बाद मिला जो कुछ भी उसे सहज स्वीकारा

पापा की शिक्षा को पूरे मन से यूँ सत्कारा! 

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

बाँटना ही है तो थोड़े फूल बाँटिये (डॉ. उर्मिलेश)

लड़कियाँ, लड़कियाँ, लड़कियाँ (डॉ. उर्मिलेश की सुप्रसिद्ध ग़ज़ल)

सोत नदी 🌼