सोत नदी 🌼


 सोत नदी 🌼


सोत नदी में फिर कलकल हो

ऐसा प्रयत्न किया जाए अब

ज़ख्म मिले हैं इसको जितने

उनको पुन: सिया जाए अब


सोत नदी के तीरे तीरे

हरियाली थी,गुंजन था

लहरें आँचल,बदरा पायल

चंदा जैसे कंगन था


क्षण क्षण क्षीण हुई काया को

जीवन दान दिया जाए अब


सोख लिया है इसके जल को

शातिर सी शैतानी ने

दोहन ने,भौतिकता ने

स्वारथ की मानामानी ने


क्यों अस्तित्व मिटा है इसका

उत्तर शीघ्र लिया जाए अब


फिर से चलें कश्तियां इसमें

मेले जुड़ें,उमंगें हों

शुद्ध नीर से करें आचमन

ऐसी धवल तरंगे हों


अपने इस स्वर्णिम अतीत को

मिलकर पुन: जिया जाये अब


~सोनरूपा 


{मुरादाबाद की तहसील अमरोहा से उत्स है सोत नदी का।वहाँ से चल कर यह मुरादाबाद जनपद के पूर्वी और दक्षिणी भाग में बसे गाँवों को छूती हुई बदायूँ जनपद की सीमा में प्रवेश करती हुई गंगा में विलीन हो जाती है।


सोत नदी स्वत: स्रोतित नदी रही है।एक समय था जब इसमें लबालब जल भरा रहता था।पहचान थी ये हमारे ज़िले की।

मैंने स्वयं इसका तरंगित स्वरूप देखा है।


हमारे पैतृक गाँव भतरी गोवर्धन से ये गुज़रती थी।मेरे पिता इसी को पार करके बाहर कस्बे में शिक्षा ग्रहण करने जाते थे।उन्होंने इसमें अठखेलियाँ की हैं।आज की सोत नदी को देखकर कोई कह नहीं सकता कि इसमें कभी सैलाब भी आता था।


आज भी याद है मुझे गाँव की वो साँझ जब सूरज डूब रहा था और नदी का जल तांबई होकर अलौकिक प्रतीत हो रहा था।नदी के तीरे खड़ी हुई नाव पर ही हम बच्चे बैठ कर बहुत ख़ुश हो रहे थे।जून की गर्मियाँ ही थीं वो।पास में आम के घने घने वृक्ष।


आज वही सोत नदी एक नाला बन कर रह गयी है।अवैध खनन,हरियाली का खात्मा,बढ़ते शहर,बढ़ती बस्तियाँ इन्होंने इसके अस्तित्व को जैसे लील लिया।भ्रष्टाचार,घोटाले,मुनाफाखोरी,बेईमानी इसकी बदक़िस्मती बन गये।पानी सूखता गया और इसके वक्ष पर निर्माण होते गये।कितने मूवमेंट्स चलाये गये।लेकिन सोत नदी में जल फिर भी नहीं आ पाया।


कई बार प्रशासन ने प्रयास किये लेकिन बेहतर परिणाम नहीं आ पाए ,मीडिया ने भी अपनी ज़िम्मेदारी

निभाई,सामाजिक संस्थायें भी आगे आयीं।व्यक्तिगत तौर भी लोग प्रयत्नशील हैं। लेकिन हर कार्य निरंतरता चाहता है।और जहाँ बात जबरन कब्जे की हो वहाँ तीखे तेवर और तेज़ाबी विरोध ही काम आता है।


बदायूँ से दिल्ली जाने वाले रास्ते में लालपुल से कभी-कभी ये चमक जाती थी।आज तो लगभग खत्म होने के कगार पर है।


इधर अख़बारों में फिर हलचल सुनाई दे रही है।सुनने में आ रहा है कि इस बरसात में प्लान बनाया जा रहा है कि गहरी खुदाई कर इसमें पुन: जल को एकत्र किया जाये जिससे आस-पास के किसान इसके पानी से सिंचाई करें।इसमें दोबारा जल बहने लगे।इसके किनारे लगे वृक्ष भी काट डाले गये।कोई इस पर भी विचार करे।


मैं भी बस कुढ़ कर रह जाती हूँ इसके हाल को देख कर।स्मृतियाँ जुड़ी हुई हैं तो और अधिक पीड़ा होती है।वही पीड़ा आज एक गीत में उकेरी है।इस गीत में एक आवाहन भी है।


आशा करती हूँ कि ये पीड़ा पीड़ा नहीं रहेगी और मेरी सोत नदी में दोबारा कलकल वापस आएगी।


मैं ज़िला प्रशासन और हमारे माननीयों पर विश्वास जताती हूँ कि अब केवल खानापूर्ति नहीं होगी।अबकि परिणाम हमारे समक्ष आएंगे।}


#SonroopaVishal #सोतनदी

13 जून 2023



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