चलो आज अपने मन का इक दिन जीकर देखें
चलो आज अपने मन का इक दिन जीकर देखें
सोच-सोच रह गए जिसे हम वो भी कर देखें
बन्द पड़ी मीठी यादों की अलमारी खोलें
उसमें से बचपन पहने लट्टू बन कर डोलें
और लड़कपन फिर खिलता अपने भीतर देखें
जीवन के पल दोहराएं हम जो हैं मनभावन कोई क्या सोचेगा
मन से दूर करें उलझन शर्बत में थोड़ी सी बेफ़िक्री पीकर देखें
पौधों सा धरती से ख़ुद को हम जुड़ जाने दें मौसम से
ख़ुशबू से ख़ुद को इश्क़ लड़ाने दें छोटी-छोटी हर ख़्वाहिश हम पूरी कर देखें
बिस्तर पर अलसाये औंधे पड़े रहें तब तक हाथ पकड़ कर
शाम कहे 'उठ भी जाओ'जब तक काश कभी ऐसे ढीले ढाले जीकर देखें
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