अपने वुजूद पे ग़ुरूर कीजिये

सृष्टि का आधार हैं,संरचनाएँ हैं जीवन की इंद्रधनुषी छटाएँ हैं धूप में छाँव देने वाली प्रथाएँ हैं

रिश्तों को संजोने वाली सभ्यताएँ हैं त्याग,तप,शौर्य, धैर्य की कथाएँ हैं

हम भोर सी पुनीत भावनाएँ हैं

इसलिए काम ये ज़रूर कीजिये

अपने वुजूद पे ग़ुरूर कीजिये!

ज़िन्दगी को जन्म देने के सुभागी हम घर के ज़र्रे ज़र्रे के अनुराग

हम प्रेम,त्याग,ममता के अनुगामी हम मन की कठोरता के प्रतिगामी

हम चाँद पर भी क़दम रख आये हैं हिम आलय की बर्फ़ चख आये हैं

गर्व ख़ुद पर बदस्तूर कीजिये अपने वुजूद पे ग़ुरूर कीजिये!

नदिया की धार कभी मुड़ती नहीं बेगवान वायु कभी रूकती नही

पर्वतों की श्रृंखलाएं झुकती नहीं जोश भरी वाणी कभी घुटती नही

आप किसी से भी कमज़ोर नहीं हैं आँसू भरे नयनों की कोर नहीं हैं

मन से समस्त भ्रम दूर कीजिये अपने वुजूद पे ग़ुरूर कीजिये!

पिता,पति,पुत्र का प्रशासन सहें भीतर भीतर रोज़ ख़ुद को दहें

कब तक सबके आदेशों को सुनें ज़िन्दगी को अपने तरीक़े से जियें

बहुत हुआ ये शोषण का सिलसिला क़िस्मत से न अब कीजिये 

गिला  शिक्षा से ये अन्धकार दूर कीजिये अपने वुजूद पे ग़ुरूर कीजिये!

अपने हितों के प्रति मुखर बनें स्वाभिमान वाला नेक रास्ता चुने

अपसंस्कृति की आग में न पिघलें आत्मसंयम वाली न राह बदलें

सत्य है स्वछंदता स्वतंत्रता नहीं इसकी आज़ादी से कोई समता नहीं

फ़ैसले करें तो बाशऊर कीजिये अपने वुजूद पे ग़ुरूर कीजिये!

आप आज कमज़ोर चूड़ियाँ नहीं मोम की कोमल आप गुड़िया नहीं

आँसू बहाती हुई बदरिया नहीं लाज को ढोने वाली चुनरिया नहीं

आप गर सीता सती सा विचार हैं आप रणचंडी का भी अवतार हैं

हौसलों को ऊँचा भरपूर कीजिये अपने वुजूद पे ग़ुरूर कीजिये 

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