जाने क्यों ये निभा रहे हैं बेमन से दस्तूर

अपने हैं बस थोड़े से हम बाहर के भरपूर

जाने क्यों ये निभा रहे हैं बेमन से दस्तूर

जैसे लम्बी बाट जोहकर नभ में खिलती भोर

हम भी ख़ुद से मिलने आते अपने मन की ओर

कभी लिए मन में कोलाहल कभी लिए सन्तूर,

अपना जीवन जीते हैं जो औरों के ढंग से दूर रहा करते हैं

फिर वो अपने ही संग से अपनी ही आंखों को चुभते होकर चकनाचूर

हर पल आओ जी लें जैसे अंतिम है ये पल

सत्य छुपा है अपने भीतर बाक़ी सब है छल

इसी नज़रिए से मिल पायेगा जीवन को नूर 

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