पिता

जीवन से लबरेज़ हिमालय जैसे थे पुरज़ोर पिता

मैं उनसे जन्मी नदिया हूँ मेरे दोनों छोर पिता

प्रश्नों के हल,ख़ुशियों के पल, सारे घर का सम्बल थे,

हर रिश्ते को बाँधने वाली थी इक अनुपम डोर पिता

जीवन के सब तौर तरीक़े, जीवन की हर सच्चाई  सिखलाया करते थे

हम पर रखकर अपना ज़ोर पिता

जब हम बच्चों की नादानी माँ से संभल न पाती थी

तब हम पर गरजे बरसे थे बादल से घनघोर पिता

रोज़ कई किरदार जिया करते थे पूरी शिद्दत से

कभी झील की ख़ामोशी थे

कभी सिंधु सा शोर पिता  दिल अम्बर सा,

मन सागर सा,क़द काठी थी बरगद सी चाँद से शीतल,तप्त सूर्य थे

ईश्वर से चितचोर पिता

सब कुछ है जीवन में लेकिन एक तुम्हारे जाने से

रात सरीखी ही लगती है मुझको अब हर भोर पिता

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