गीतऋषि बलवीर सिंह 'रंग'

हिंदी गीत को मंच पर प्रतिष्ठित करने में यदि कुछ नाम लिए जाएं तो उनमें श्री बलवीर सिंह 'रंग' का नाम  प्रमुखता से लिया जाता है। गीत में मौलिक चिंतन,ग्राम्य परिवेश,पुरातन में परिष्कृत नवीनता के सारथी,विस्तृत भावभूमि के रचनाकार,हिंदुस्तानी भाषा के पक्षधर,दोनों बाँहों में गीत-ग़ज़ल को थामे रहने वाले बलवीर सिंह 'रंग' के रंग ने हिन्दी साहित्य प्रेमियों को पूरा सराबोर कर दिया है। हिंदी गीत की कोई भी आलोचना और समीक्षा रंग जी के बिना अधूरी है ।आप ये भी कह सकते हैं कि हिन्दी गीत का रंग ही रंग जी के गीतों बिना फ़ीका है। हिन्दी ग़ज़ल का उदगम भी नि:संदेह रंग जी द्वारा हुआ। क्या अद्भुत तौर से उन्होंने हिन्दी के शब्दों को ग़ज़लों में पिरोया।  ज़िला एटा हमारे बदायूँ से बेहद नज़दीक है।वहीं उनका जन्म हुआ। यहाँ एक ज़िक्र मैं करना चाहूँगी कि रंग जी हमारे शहर के ज़िला अस्पताल में इलाज के लिए आये और फिर कई महीनों के लिए यहीं के होकर रह गए। अस्पताल में ही ख़ूब कविताओं की महफ़िल जमती।पिता जी और बदायूँ के सभी साहित्यकार वहाँ रोज़ हाज़िरी लगाते।मैं तो सोच सोच कर ही उस आनंद का अंदाज़ा लगाती हूँ। पिता जी डॉ उर्मिलेश उन्हें बड़े प्रिय थे। पिता जी ने अपनी पहली ग़ज़ल भी उन्हीं से प्रेरित होकर लिखी- 'सूना सूना है सावन तुम्हारे बिना अब न लगता कहीं मन तुम्हारे बिना'  जब वो बदायूँ में रहते थे तो मैं मुश्किल से चार पाँच साल की रही होऊँगी।घर पर उनका आना जाना लगा रहता था।

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