ईद मुबारक

 भले ही इस बार बाज़ारों में,दुकानों में,मेलों में,गलियों में पहले सी रौनक नहीं होगी।कोई हामिद दादी को मेले से चिमटा न ला पाएगा।इस बार सिवइयों की कटोरियाँ भी दोस्तों के हाथ में नहीं होंगी।गले बिन मिले रह जाएंगे।महबूबा को नए लिबास में न देख पाना आशिक़ को कितना अखरेगा।लड़कियाँ आँक नहीं पायेंगी कि उसका झुमका मेरे झुमके से सुंदर कैसे?

चूड़ियाँ खनकने को बेताब ही रह जायेंगी।बच्चे ईदी ख़र्चने को।
लेकिन अपनी पूरी सज धज के साथ, रौशनी से लबरेज़, आसमान में ईद की मुनादी करने वाला चाँद ख़ुशियों और उम्मीदों का अब्र लेकर आया है ईद के ज़रिए।
उसे मायूस नहीं करना है हमें इसीलिए आइए मेरे साथ कहिए-
इक अरसे से अच्छे पल दीद नहीं
अब तक देखी ऐसी कोई ईद नहीं
लेकिन मेरे चाँद तुझे ये बतला दें,
बेबस हैं हम लेकिन नाउम्मीद नहीं

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

बाँटना ही है तो थोड़े फूल बाँटिये (डॉ. उर्मिलेश)

सोत नदी 🌼

भय अजय होने न दूँगी