पुरुष दिवस

 ||पुरुष दिवस||


पुरुष को पौरुष से परिभाषित किया जाना ही पुरुष के लिए सबसे कठिन है।वो सिद्ध करता रहता है स्वयं को इसी परिभाषा के खाँचे में। वो मज़बूत है ,शक्तिवान है,सक्षम है लेकिन उसे भी होना है भावुक,कोमल,रो देने वाला,कह देने वाला कि मुझसे नहीं निभ पायेंगी सब ज़िम्मेदारियाँ,जी लेने वाला कभी सिर्फ़ अपने लिए।
दरअसल वो बाहर से पूरा दिखता है पर अंदर से अधूरा है।उसे डूब कर उबरना है,उसे रोकर हँसना है,उसे गिरकर सम्भलना है।
स्त्रियों हो जाने दीजिए उसे ऐसा ,बन जाइये उसके लिए एक कंधा,एक रूमाल,एक उँगली।
आज दुनिया पुरुष दिवस मना रही है उसने तुम्हारे स्त्रीत्व को पूर्णता दी है तुम उसके पुरुषत्व को पूर्णता देना।

~सोनरूपा

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