छठ पर्व पर

 इधर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में छठ नहीं होती.लेकिन जब से संचार के माध्यम बढ़े तब से त्योहार केवल विशेष क्षेत्र के न हो कर सबके से हो गए.और हम भारत वासी हैं भी तो उत्सव प्रेमी.हर त्योहार मनाना चाहते हैं.हमारे यहाँ मेरा-तुम्हारा नहीं बल्कि एकत्व प्रबल है.

अभी घर लौटी तो सबसे पहले टी.वी. खोला.उत्सुक थी अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देती हुई स्त्रियों को देखने के लिए.इस समय लंबी माँग भरी,चटक साड़ियाँ पहनी व्रती स्त्रियाँ पूजन सामग्री लिए जल में बस उतर ही रही हैं पूजन के लिए.कितना कठिन व्रत होता है छठ का लेकिन निष्ठा और आस्था के समक्ष सारी कठिनाइयाँ हार जाती हैं.
सूर्य को कृतज्ञता ज्ञापित करते,अपने परिवार की सुख समृद्धि की कामना करते जनसैलाब को देख कर मुझे भी पिछले वर्ष इलाहाबाद में बहती संगम की धारा और उसमें झिलमिलाती डूबते सूर्य की किरणों के मद्दम होते हुए वो दृश्य याद आ गए जिन्हें मैंने जी भर जिया था.
इस समय भी मेरे पास न बहंगी है,न आसपास नदी,न पोखर, न छठ का परिवेश लेकिन मन है आराधना का.
जिसे स्वीकारें सूर्य देवता.
आप सबको छठ की शुभकामनाएं.आपके परिवार पर छठी मैया का आशीर्वाद बना रहे.
मेरा यदि अगला जन्म हो तो भारत में ही हो.यहाँ जैसी आस्था,परम्परा,संस्कार,अपनत्व,समभाव और कहाँ 🌼

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

बाँटना ही है तो थोड़े फूल बाँटिये (डॉ. उर्मिलेश)

लड़कियाँ, लड़कियाँ, लड़कियाँ (डॉ. उर्मिलेश की सुप्रसिद्ध ग़ज़ल)

सोत नदी 🌼