गोपालदास नीरज की जन्मजयंती पर

 नीरज जी पीड़ा के,दर्शन के,प्रेम के कवि कहलाए जाते हैं। गीतों के वो प्रथम हिमालयीन निर्मल जल जिसका यदि आचमन कर लिया जाए तो जीवन से परिचय हो जाये।

प्रीति से प्रतीति की एक डोर। जीवन के प्रारब्ध को बाँचता हुआ संत स्वर जिसका शब्द-शब्द मंत्र हो यानी गोपालदास 'नीरज'।आज उनकी जन्मजयंती है।वो स्वयं को अपने गीतों की सन्तूरी ध्वनियों में स्पंदित कर गए हैं।
उन्हें विनम्र प्रणाम 🌼
प्रेम का पंथ सूना अगर हो गया,
रह सकेगी बसी कौन-सी फिर गली?
यदि खिला प्रेम का ही नहीं फूल तो,
कौन है जो हँसे फिर चमन में कली?
प्रेम को ही न जग में मिला मान तो
यह धरा, यह भुवन सिर्फ़ श्मशान है,
आदमी एक चलती हुई लाश है,
और जीना यहाँ एक अपमान है,
आदमी प्यार सीखे कभी इसलिए,
रात-दिन मैं ढलूँ, रात-दिन तुम ढलो।
प्रेम-पथ हो न सूना कभी इसलिए,
जिस जगह मैं थकूँ, उस जगह तुम चलो।

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