लहरों... बस कुछ देर और


 

लहरों
बस थोड़ी देर और ठहरी रहना
मैं वो सब कुछ लिख देना चाहती हूँ
जिसे मिटाना चाहती हूँ ....
आज हो
कल नहीं होगी तुम   
  मेरे साथ 
तब मन को साथ ले लूँगी
उस पर लिखूंगी वो बातें जिन्हें मैं लिखना भी चाहती हूँ पर मिटाना भी.....


टिप्पणियाँ

  1. समन्दर के सीने पर लहरों के लिए पैग़ाम...!!....लेकिन वे पढ़े बिना ही न मिटा दें...!

    जवाब देंहटाएं
  2. में तो आप के साथ ही हु ,जब तक कहोगे रुक जउगी

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत खूब .....
    अपनी १०,१२ क्षनिकाएं संक्षिप्त परिचय और तस्वीर के साथ भेज दें सरस्वती सुमन पत्रिका के लिए .....

    harkirathaqeer@gmail.com

    जवाब देंहटाएं
  4. रेत पर लिखे लफ्ज़ केवल लहरें ही पढ़ सकती है | सुंदर अतिसुन्दर

    जवाब देंहटाएं
  5. very nice mam..."jinhe main likhna chahti hoon per mitaana bhi'..samajhkar samjhaana bahut mushkil hai in chand lines ko...thxxx urs abika

    जवाब देंहटाएं
  6. शुक्रिया हरकीरत जी ....जल्द ही कुछ कवितायें आपको प्रेषित करूंगीं ..

    जवाब देंहटाएं
  7. उत्साहवर्धन हेतु धन्यवाद सुनील जी ....

    जवाब देंहटाएं
  8. सोनरूपा जी आपका पोस्ट अच्छा लगा । मन में बहुत सारी बातें रच-बस जाती हैं लेकिन हम मन में बसे उन भावें को दिल से निकालने के लिए भी हम मजबूर हो जाते हैं ।. गहन भावों से पूर्ण आपकी कविता प्रशंसनीय है । धन्यवाद ।

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत बहुत शुक्रिया प्रेम सरोवर जी ....

    जवाब देंहटाएं
  10. आपकी हर प्रस्तुति गहन अर्थ समेटे होती है.
    अनुपम प्रस्तुति के लिए आभार.

    जवाब देंहटाएं
  11. सुन्दर प्रस्तुति ..पर लहरें कहाँ ठहरी हैं ?

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

बाँटना ही है तो थोड़े फूल बाँटिये (डॉ. उर्मिलेश)

लड़कियाँ, लड़कियाँ, लड़कियाँ (डॉ. उर्मिलेश की सुप्रसिद्ध ग़ज़ल)

सोत नदी 🌼