आज रात 'जगजीत' बेफ़िक्र नींद सोये हुए हैं .....
आज रात 'जगजीत' बेफ़िक्र नींद सोये हुए हैं ......
टी.वी. के सारे न्यूज चैनल बदलते बदलते ,जगजीत जी पर ख़ास पेशकश छानते - छानते रात के दो बज चुके हैं और अब क्यों कोई चैनल जगजीत जी पर कुछ ख़ास पेश करेगा बस इसी वजह से रिमोट पर मेरी उँगलियाँ उन्ही की तस्वीरें ,उन्ही की ग़ज़लें ढूँढ रही हैं, बेचैन सी हूँ उन पर जितना कवरेज देख सकूं देख लूं .....
नींद ने मुझे आज इजाजत दे दी है कि जाओ जागो अपने जगजीत के साथ .... लेकिन जगजीत जी के आज बिना धड़कन के सो रहे है बस इसी बात का तसव्वुर ना जाने कितनी देर मुझे और जगाएगा | मेरी प्रेरणा सो चुकी है इससे ज्यादा क्या कहूँ ? क्यों शिकायत करूँ मैं अपनी आँखों से कि क्यों नहीं झपकती पलकें इतनी रात गए ...........
मेरी हर कम्पोज की हुई गजलों में जगजीत जी का अंदाज शामिल ना हुआ हो ऐसा बहुत कम हुआ और अगर हुआ भी तो वो धुन से मेरा रिश्ता क़रीबी नहीं रहा,कई बार सोचा इस बार कुछ संजीदगियाँ और साद्गियाँ कम और सुरों की हरकतें ज्यादा ......लेकिन पहला प्यार तो आख़िर पहला ही होता है और पहला प्यार था जगजीत का अंदाज......और मैं लौट फेरकर वहीं फिर यानि अपने प्यार के पास सिर्फ़ और सिर्फ़ अपने सुकूं के लिए .........
अलौकिक जगत का नहीं मानती हूँ मैं ख़ुद को ........... कहते है रूह को मौत से नहीं तोलते, रूह कभी नहीं मरती और मौत तो है ही मरने का पर्याय...... मैं भी हमेशा यही लिखती आई हूँ ,सोचती आई हूँ और मानती भी आई हूँ लेकिन फिर भी आज फिर अपनी इस बात से पलट रही हूँ क्यों ? फिर से वही सच क़ुबूल रही हूँ कि मैं ख़ुद को अलौकिक जगत का नहीं मानती यानि बेबस हूँ एक मौत के सामने एक बार फिर..........
जगजीत जी को ब्रेन हैमरैज होना ,फिर सर्जरी होना उसके बाद उनका वेंटीलेटर जाना... ये पूरा का पूरा घटनाक्रम ठीक वैसा ही था जैसा मेरे पिता ने भोगा.. मेरे पिता के बारह दिनों तक चले जीवन संघर्ष ने मुझे कई रात आँसुओं से भिगोया है और भिगोयेगा भी ..............जगजीत जी आपको भी इतनी ही जल्दी थी ? .........
नींद ने मुझे आज इजाजत दे दी है कि जाओ जागो अपने जगजीत के साथ .... लेकिन जगजीत जी के आज बिना धड़कन के सो रहे है बस इसी बात का तसव्वुर ना जाने कितनी देर मुझे और जगाएगा | मेरी प्रेरणा सो चुकी है इससे ज्यादा क्या कहूँ ? क्यों शिकायत करूँ मैं अपनी आँखों से कि क्यों नहीं झपकती पलकें इतनी रात गए ...........
मेरी हर कम्पोज की हुई गजलों में जगजीत जी का अंदाज शामिल ना हुआ हो ऐसा बहुत कम हुआ और अगर हुआ भी तो वो धुन से मेरा रिश्ता क़रीबी नहीं रहा,कई बार सोचा इस बार कुछ संजीदगियाँ और साद्गियाँ कम और सुरों की हरकतें ज्यादा ......लेकिन पहला प्यार तो आख़िर पहला ही होता है और पहला प्यार था जगजीत का अंदाज......और मैं लौट फेरकर वहीं फिर यानि अपने प्यार के पास सिर्फ़ और सिर्फ़ अपने सुकूं के लिए .........
अलौकिक जगत का नहीं मानती हूँ मैं ख़ुद को ........... कहते है रूह को मौत से नहीं तोलते, रूह कभी नहीं मरती और मौत तो है ही मरने का पर्याय...... मैं भी हमेशा यही लिखती आई हूँ ,सोचती आई हूँ और मानती भी आई हूँ लेकिन फिर भी आज फिर अपनी इस बात से पलट रही हूँ क्यों ? फिर से वही सच क़ुबूल रही हूँ कि मैं ख़ुद को अलौकिक जगत का नहीं मानती यानि बेबस हूँ एक मौत के सामने एक बार फिर..........
जगजीत जी को ब्रेन हैमरैज होना ,फिर सर्जरी होना उसके बाद उनका वेंटीलेटर जाना... ये पूरा का पूरा घटनाक्रम ठीक वैसा ही था जैसा मेरे पिता ने भोगा.. मेरे पिता के बारह दिनों तक चले जीवन संघर्ष ने मुझे कई रात आँसुओं से भिगोया है और भिगोयेगा भी ..............जगजीत जी आपको भी इतनी ही जल्दी थी ? .........
आपने बहुतों के ग़म गाये ख़ुद के ग़म के साथ ......
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जवाब देंहटाएंNa jane kitni zindagiyon ka aham hissa rahi Jagjit jee ki aawaaz. Lekh mein vyakt aapki bhaavnayein apne dil se aati mehsoos huin. Wo bhalen ab humare sath na hoon par unki aawaaz ko humse koyi nahin chheen sakta.
जवाब देंहटाएंसच ...आपके इन भावों ने मुझे ०६ साल पहले हुई हमारी पारिवारिक, सामाजिक,और राष्ट्रीय क्षति और उनसे जुडी हर एक घटना को एक बार फिर से आँखों के सामने खड़ा कर दिया और एक बार फिर मैं हत्प्रभ सा देखता रह गया और जिंदगी की सारी उम्मीदें बंद मुठ्ठी में से रेत की तरह फिसल गयी.......
जवाब देंहटाएंआज फिर राष्ट्रीय गीतकार स्वर्गीय डॉ. उर्मिलेश की गज़ल का शेर " कितने दिन जिंदा रहे इसको न गिनिए साहिब, किस तरह जिंदा रहे इसकी शुमारी रखिये ...." सार्थक होता है क्योंकि जगजीत जी ने अपने जीवन की सादगी और समर्पण से हम सभी के बीच में अपनी अमिट छाप अपनी ग़ज़लों के रूप में छोड़ी है ....हम सभी बचपन, जवानी के अनेकों प्रसंगों में जगजीत जी की गज़लों के माध्यम से ही कभी खुशी कभी गम को सहेजते रहे हैं .......
मुझे पूरा विश्वास है कि जगजीत जी ने हम सभी को जिंदगी को समस्त सुखों और दुखों के साथ जीने की कला का एक जो अनुकरणीय उदाहरण दिया है उसका सही अनुसरण ही उनको सच्ची श्रधांजलि होगी.........
Abhishek ji ,i can feel ur emotions ! we hv to follow the way of living of such legends........
जवाब देंहटाएंManish ji , SOMEONE SOMEWHERE' always will remain with us !!!
जवाब देंहटाएंसोनरूपा जी ,आपने सच कहा है कि स्वर्गीय जगजीत सिंह के जाने से संगीत जगत का सबसे रोशन आफताब उठ गया है उनकी कमी न सिर्फ संगीत जगत को बल्कि गज़ल गायिकी को खासतौर पर खलेगी गज़ल गायिकी को जो मायार इन्होने दिया वह अब तक न कोई कर पाया है न कर पायेगा ...उनकी मखमली आवाज़ के आगे गज़ल के मायेने भी चहेते लगने लगते थे यह सही कि उन्होंने गज़ल को सीमित दायेरे से निकाल कर हम आम आदमी तक पहुचाया ..जगजीत सिंह ने तबला के साथ ओक्तोपद ,सारंगी कि जगह वायलिन और हरमोनियम कि जगह कि बोर्ड का इस्तेमाल किया ..हम और आप और जाने कितने संगीत प्रेमी उनकी सुकून पाने वाली मधुर आवाज़ में अपनी भावनावो कि अभिव्यक्ति हमेशा पाते रहेंगे
जवाब देंहटाएंनिश्चित रूप से जगजीत के जाने से एक अँधेरा हो गया है.
जवाब देंहटाएंएकदम सच कहा. ..सुन्दर अभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंबहुत ही भावुक कर देने वाली पोस्ट.
जवाब देंहटाएंगज़ल के पर्याय को श्रद्धांजलि.
Sundar Rachna.
जवाब देंहटाएंबहुत तनहा होंगी वो ग़ज़लें जो अभी भी लिखी जानी हैं, लिखे जाने से पहले ही उनको संवारनेवाला अलविदा कह गया. शायद वो भी अब हमारी तरह उदास ही रहेंगी.
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